Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 79
________________ आदमी आदमी को आदमी बनना सिखाया वीर ने, देवता सोया हुआ जग का जगाया वीर ने । विश्व के जन एक हैं, सब यह बताया वीर ने, घोर तम में सत्य का सूरज दिखाया वीर ने ।। वीर की क्या देशना थी, बस सुधा की वृष्टि थी। हो गई जागृत सचेतन, जो कि मूर्च्छित सृष्टि थी॥ मंगल मंगल मन हो, मंगल वाणी, मंगल हो सब कर्म अनूप । मन की तमसा मिट जाए तो, नर ही है नारायण - रूप ॥ ६८ सागर के मोती: Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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