Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 77
________________ मिलकर चलो मिलकर सोचो, मिलकर बोलो, मिलकर चलो, एक ही पथ पर । घृणा - द्वष से दूर रहो नित, करो सर्व व्यवहार प्रीतिकर ॥ जैसे को तैसा यह भी अच्छा, वह भी अच्छा, अच्छा - अच्छा सब मिल जाए। हर मानव की यही तमन्ना, किन्तु प्राप्ति का मर्म न पाए। अच्छा , पाना है, तो पहले, खुद को अच्छा क्यों न बना लें ? जो जैसा है, उसको वैसामिलता, यह निज मंत्र बना लें । . NERS VINATO . . सार के मोती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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