Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 76
________________ अमर सत्य सत्य सत्य है, सदा सत्य है , उसमें नया पुराना क्या ? जब भी प्रकट सत्य की स्थिति हो, स्वीकृति से कतराना क्या ? सत्य, सत्य है, जहां कहीं भी, मिले उसे अपनाना है। स्व - पर पक्ष से मुक्त सत्य की, निर्भय ज्योति जलाना है। स्वर्ग और नरक सदाचार है स्वर्ग पुण्य कीज्योति सदा जलती रहती है ? मंगलमय सुख, शान्ति, प्रेम की, सृष्टि नित्य नूतन रहती है। कदाचार है नरक, पाप कीघोर निशा छायी रहती है। रोग, शोक, भय, उत्पीड़न की, हाय - हाय हर क्षण रहती है। अमर सत्य: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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