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आदमी
आदमी को आदमी बनना सिखाया वीर ने, देवता सोया हुआ जग का जगाया वीर ने । विश्व के जन एक हैं, सब यह बताया वीर ने, घोर तम में सत्य का सूरज दिखाया वीर ने ।।
वीर की क्या देशना थी, बस सुधा की वृष्टि थी। हो गई जागृत सचेतन, जो कि मूर्च्छित सृष्टि थी॥
मंगल
मंगल मन हो, मंगल वाणी, मंगल हो सब कर्म अनूप । मन की तमसा मिट जाए तो, नर ही है नारायण - रूप ॥
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सागर के मोती:
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