Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 61
________________ पति की इस गहरी चोट ने पत्नी को होश में ला दिया। तब से सास के प्रति उसका सारा व्यवहार बदल गया। अब तो सास की वह सेवा होने लगी कि सारा मुहल्ला वाह - वाह करने लगा। स्वराज्य का उपहास सन् १९३० में हिन्दी के दैनिक पत्न ने 'हास-परिहास'स्तम्भ में लिखा था कि एक सज्जन विना टिकट सफर कर रहे थे । टिकट चैकर ने उन्हें पकड़ा, तो बोले-"और कुछ दिन तुम तंग कर लो। अब स्वराज्य मिलने वाला है, फिर तो जहाँ चाहेंगे, वहाँ विना टिकट घूमा करेंगे।" स्वराज्य से पहले यह परिहास था, और अब ? अब यह सत्य हो गया है। स्वराज्य क्या मिला, जनता का विवेक ही नष्ट हो गया। आज अधिकार की मारा - मारी है, अधिकार के साथ उत्तरदायित्व भी कुछ है, इसका कोई भान ही नहीं रहा। सागर के मोती : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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