Book Title: Sagar ke Moti Author(s): Amarmuni Publisher: VeerayatanPage 68
________________ मैं ही मेरा ईश्वर मेरा ईश्वर मेरे अन्दर, मैं ही अपना ईश्वर हूँ। कर्ता, धर्ता, हर्ता - अपने, जग का मैं लीलाधर हूँ॥ शुद्ध, बुद्ध, निष्काम, निरंजन, कालातीत सनातन हूँ। एकरूप हूँ सदा - सर्वदा, ना नूतन, न पुरातन हूँ। पुरुषार्थ जीवन - नौका का नाविक है, एक मात्र पुरुषार्थ महान् । सुख - दुःख की उत्ताल तरंगें। कर न सकें उसको हैरान । मैं ही मेरा ईश्वर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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