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कर्म - योग
सत्वहीन नर बातें करते, कर्म - योग से कोसों दूर । मिट्टी के कच्चे घट की ज्यों, जीवन होता चकनाचूर ॥
स्वप्न स्वप्न हैं, स्वप्नों से क्या, होता जीवन का निर्माण ? श्रम की सतत साधना में ही, रहा हुआ है जन · कल्याण ॥
विश्वास घोर निराशा - तमस् घिरा हो, विश्वासों के दीप जलाओ। सब - कुछ टूटे, टूट गिरे, परमत अपना विश्वास गिराओ॥ विश्व बदलता, विश्वासों पर, विश्वासों पर विजय - पराजय । विश्वासों के बल झुकता है, सहसा दुर्गम, अचल हिमालय ।।
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सागर के मोती:
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