Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 72
________________ आत्म - बोध आत्म - बोध के विमल स्रोत में, अन्तरतम को धो लो। और सभी कुछ पीछे, पहलेमन के बन्धन खोलो। चिन्तन की लौ चिन्तन की लौ दीप्त अगर है, होगा ज्ञानोद्योत अमन्द । बुझा दीप तम हर न सकेगा, चाहे रचो कोटी छल - छन्द । ___ क्षमा पर्व - पर्युषण घृणा, घृणा से, वैर, वैर से, कभी शान्त हो सकते क्या ? कभी खून से सने वस्त्र को. खून ही से धो सकते क्या ? क्षमा, शान्ति, सद्भाव, स्नेह की, गंगा की निर्मल धारा । गहरी डुबकी लगा हृदय से, धो डालो कलिमल सारा॥ आत्म - बोध: Jain Education International Tona! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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