Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 73
________________ ६२ पतझड़ आता है, उसे रोकना यत्न जीर्ण शीर्ण गिरते रोना धोना कोन पतझड़ जाता है, नव वसन्त हंसता जीबन का आनन्द वसन्त का स्वागत Jain Education International 1 - - आएगा खिलता । उसी में, मधुर मधुरतम है मिलता || - आएगा, व्यर्थ है । पत्तों पर, अर्थ है ? - महाश्रमण महावीर वीर ! तुम्हारे पद पंकज युग, इस धरती पर जिधर चले | कदम-कदम पर दिव्य भाव के, सुरभित; स्वर्णिम पुष्प खिले ॥ हिंसा, घृणा वैर के ध्वस्त हुए पीड़ा कण्टक, कारी । जन मन में निष्काम प्रेम की, महक उठी केसर क्यारी ॥ · For Private & Personal Use Only सागर के मोती । www.jainelibrary.org

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