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पतझड़
आता है,
उसे रोकना यत्न
जीर्ण शीर्ण गिरते
रोना धोना कोन
पतझड़ जाता
है,
नव वसन्त हंसता
जीबन का आनन्द
वसन्त का स्वागत
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आएगा
खिलता ।
उसी में,
मधुर मधुरतम है मिलता ||
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आएगा,
व्यर्थ है ।
पत्तों पर,
अर्थ है ?
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महाश्रमण महावीर
वीर ! तुम्हारे पद पंकज युग, इस धरती पर जिधर चले | कदम-कदम पर दिव्य भाव के, सुरभित; स्वर्णिम पुष्प खिले ॥ हिंसा, घृणा वैर के ध्वस्त हुए पीड़ा
कण्टक,
कारी ।
जन मन में निष्काम प्रेम की,
महक उठी केसर
क्यारी ॥
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सागर के मोती ।
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