Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 34
________________ "वत्स ! वह तेरा आत्म - धन है। सत्य और अहिंसा आदि निज गुग ही वस्तुतः मनुष्य की असली संपत्ति है । वह एक वार लुट जाने के बाद दुबारा प्राप्त होनी सहज नहीं है। विषयवासनाओं के द्वारा वह सम्पत्ति प्रतिक्षण लूटी जा रही है और तुझे उसका तनिक भी पश्चात्ताप नहीं है।" धनिक अन्तर् में जाग उठा । कहते हैं, उसने अपनी सब सम्पत्ति परोपकार के पवित्र - पथ पर सहर्ष समर्पित कर दी। हनुमान की आदर्श भक्ति एक बार हनुमानजी से किसी ने पूछा- 'आप इतने बड़े बलवान भीमकाय हैं, फिर भी आपने रावण का नाश क्यों नहीं कर दिया? हनुमानजी ने कहा-'वह राक्षसाधम मेरे सामने कुछ भी चीज न था, परन्तु यदि मैं रावण को मार डालता, तो राम की कीर्ति नष्ट हो जाती। असली धने: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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