Book Title: Sagar ke Moti Author(s): Amarmuni Publisher: VeerayatanPage 56
________________ शिवाजी की नैतिक पवित्रता शिवाजी महाराज ने धनघोर युद्ध के बाद मुगल सेना से एक किला जीता। किलेदार भाग गया, किन्तु उसकी लड़की पकड़ी गई। लड़की बहुत सुन्दर थी। जब सेनापति ने लड़की को शिवाजी की सेवा में उपस्थित किया, तो वह डरी हुई थी कि- "मुझे अब दासी होना होगा। अब मैं अपने माता-पिता का मुंह कभी भी न देख सखू गी। पता नहीं, मेरे साथ कैसा व्यवहार होगा ?" परन्तु, शिवाजी ने लड़की को देखते ही भरे दरबार में कहा-"अहा, कैसी सुन्दर लड़की है । यदि यह मेरी माँ होती, तो मैं ऐसा कुरूप कदापि नहीं होता।" लड़की को बहुत कुछ धनराशि दे कर कहा--"बेटी ! लो, यह तुम्हारी शादी का दहेज है। इसे लेकर अपने पिता के पास जाओ, वह योग्य वर ढूँढ़ कर तुम्हारी शादी कर देंगे । जैसे तुम अपने पिता की पत्री हो. वैसे ही मेरी भी पत्री हो।" 40 3Son शिवाजी की नैतिक पवित्रता : ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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