Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 58
________________ सिर का मोल सम्राट अशोक भिक्षुओं की वन्दना किया करते थे। उनके मन्त्री यश को यह बात अच्छी न लगी। उसने अशोक से कहा"महाराज, इन बुद्ध - मत के साधुओं में सब जाति के लोग होते हैं । अपने अभिषिक्त सिर को इनके आगे झुकाना ठीक नहीं है।" अशोक ने यश को उस समय कुछ उत्तर नहीं दिया। परन्तु थोड़े दिन बाद बकरे - भेड़ आदि मवेशी प्राणियों के सिर मंगाकर उनको बेचने के लिए लोगों को भेजा । यश को मृत मनुष्य का सिर देकर बेच लाने को कहा। बकरे आदि के सिर बिक गए। कुछ पैसा भी मिला। पर, मनुष्य का सिर किसी ने भी नहीं लिया । तब अशोक ने यश से कहा कि इस मनुष्य के सिर को बिना दाम लिए ही किसी को दे दो। पर, उस सिर को विना दाम के भी किसी ने नहीं लिया। लेने की बात तो दूर, जहाँ यश सिर ले जाता, लोग उससे घृणा करते । उसे कोई अपने पास में भी खड़ा नहीं होने देता। बाद में यश ने अशोक से कहा कि मुफ्त में भी इस सिर का लेने वाला कोई नहीं है। सम्राट अशोक ने पूछा- "इसे लोग मुफ्त भी क्यों नहीं लेते ?" यश ने कहा- “महाराज, इस सिर से घृणा करते हैं।" अशोक ने फिर पूछा--"क्या इसी सिर से लोग घृणा करते हैं, या सब मनुष्यों के सिर से घृणा करते हैं ?" यश ने कहा-"महाराज, किसी भी आदमी का सिर काट कर ले जाया जाए, लोग उससे घृणा करेंगें।" सिर का मोल । ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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