Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 47
________________ बुढ़िया का अहंकार एक बुढ़िया घर में अकेली थी, उसे पान खाने का बड़ा शोक था। किन्तु, आस - पास के पड़ोसियों की इतनी अधिक उदा. सीनता कि कोई उसे यह न कहता कि वह पान खाती है। बुढ़िया ने लोगों की इस बेरुखी से अधीर होकर एक दिन अपने घर को आग लगा दी और शोर मचा दिया-"दौड़ो, दौड़ो। घर में आग लग गई है।" पड़ोसी दौड़े आए। कुछ घर का सामान बाहर निकलवाने लगे और कुछ आग बुझाने के लिए पानी लाने में व्यस्त हो गए। बुढ़िया ने सामान निकालने वालों में से एक से कहा-"बेट जरा मेरा पानदान भी निकाल देना।" इस पर पास खड़े हुए एक आदमी ने टोका-"ओ हो ! बुढ़िया, तू पान भी खाती है ?" इस पर बुढ़िया ने प्रश्नकर्ता को गालियाँ और उपालम्भ देते हुए कहा- "तुमने यही बात पहले पूछ ली होती, तो मैं घर को आग ही क्यों लगाती ?" सागर के मोती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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