Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ प्रभु - सेवक कौन? भक्त आबूबन अपने युग के बड़े ही सहृदय और सच्चे पुरुष थे। वे सब को समान दृष्टि से देखते और सब की सेवा का सस्नेह लाभ लेते । एक दिन की बात है कि रात को सोते हुए आधी रात के समय जब एकाएक उनकी आँखे खुली, तो उन्होंने देखा कि सारा घर प्रकाश से जगमगा रहा है और एक देवदूत सुनहरी पुस्तक में कुछ लिख रहा है। "आप इस पुस्तक में क्या लिख रहे हैं ?"-आबूबन ने पूछा। "जो लोग ईश्वर को हृदय ने प्यार करते हैं, मैं उन लोगों के नाम इस पुस्तक में लिखता हूँ"-देवदूत ने धीरे से उत्तर दिया। "क्या मेरा नाम भी लिखा है ? 'नहीं।" "नहीं लिखा, तो कोई हर्ज नहीं । परन्तु, इतना लिख लीजिए कि---आबूबन सब मनुष्यों को हृदय से प्यार करता है।" यह सुनकर देवदूत अदृश्य हो गया। अगली रात को जब वह पुन: लौट कर आया और वह पुस्तक आबूबन की आँखों के सामने की, तो आबूबन ने देखा-- जितने भी ईश्वर - भक्तों के नाम उस पुस्तक में लिखे थे, उनमें सबसे पहले आबूबन का ही नाम लिखा था। उक्त कथा का संदेश है-“जन - सेवक ही सच्चा प्रभु-सेवक है। जनता से प्यार किए बिना, प्रभु का प्यार नहीं मिलता। प्रभु - सेवक कौन ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96