Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 51
________________ सत्य को हँसी का डर नहीं एक बार किसी विशेष प्रसंग पर चर्चा करते हुए श्री घनश्यामदास बिड़ला ने गाँधीजी से पूछा- “आपने ऐसा कौन-सा काम किया है, जिसे साहस की दृष्टि से आप अपने जीवन में ऊँचेसे-ऊँचा स्थान दे सकें ?" ___ "इस दृष्टि से तो मैंने कभी नहीं विचारा'-गाँधीजी ने कहा। किन्तु,मैं समझता हूँ बारदोली सत्याग्रह स्थगित करके मैंने बहुत बड़े साहस का परिचय दिया। चौबीस घंटे पहले सरकार को चुनौती देकर ललकार करना और फिर अचानक सत्याग्रह को स्थगित करना, यह अपने आपको बेहद हास्यास्पद बनाना था, किन्तु तब में तनिक भी न झिझका। जो सत्य था, वही मेरा राजमार्ग था और इसीलिए मेरी अपनी हँसी होगी, इस विचार ने मुझे कभी भयभीत नहीं किया। मेरे जीवन के बहुत बड़े साहसिक कामों में यह एक था, ऐसा मैं मान सकता हूँ।" गांधीजी के उत्तर का मर्म ऊपर से नहीं, गहराई में जा कर समझना चाहिए । आगे बढ़ना या पीछे हटना, गांधीजी की दृष्टि में इसका कोई मूल्य नहीं, मूल्य है एकमात्र सत्य का । सत्य के लिए कभी पीछे भी हटा जा सकता है, फिर भले ही, कितनी ही क्यों न हँसी हो, मजाक हो ! सागर के मोती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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