Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 32
________________ जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा आमेर नरेश महाराजा मानसिंह युद्ध करने के लिए काबुल जा रहे थे। उनकी विराट् सेना विजय - पर - विजय प्राप्त करती हुई आगे बढ़ रही थी। परन्तु ज्यों ही मार्ग में अटक (सिन्धु नदी) आई, तो सब - की - सब सेना विचार सूढ़ - सी तट पर खड़ी हो गई । बात यह हुई कि सेना के राजपूत सिपाही अटक नदी को पार करने से हिचक रहे थे। उनको यह भ्रम था कि मुसलमानी देश में जाने से कहीं हमारा धर्म ही न जाता रहे। महाराजा मानसिंह को जब यह पता लगा, तो उन्होंने कहा-संसार की सब भूमि प्रभु गोपाल की है, भला इसमें अटक अर्थात् रुकावट कैसी ? जिस के मन में अटक है, वह ही अटकता है, और कोई नहीं। अटक पार कर विदेश में जाने से धर्म नहीं जाता। धर्म का सम्बन्ध आत्मा की सच्ची श्रद्धा से है, किसी भूमि - विशेष से नहीं। सबै भूमि गोपाल की, या में अटक कहाँ ! जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा !! जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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