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कंजसों का सरदार एक यहूदी की दुकान पर एक स्काच माल खरीदने गया । स्काच को पहले ही सावधान कर दिया गया था कि यहूदी दुगुने दाम माँगा करता है, इसलिए मोल - तोल ठीक - ठीक करना, ठगे न जाना।
स्काच साहब सावधान तो थे ही। एक छाते की कीमत पूछी। यहूदी ने कहा-दश शिलिंग। इस पर स्काच साहब ने फरमाया, यह तो बहुत ज्यादा है, हम तो पांच शिलिंग देंगे। यहूदी ने कहा-पाँच तो नहीं, पर तुम सज्जन मालूम होते हो, इसलिए छाता आठ शिलिंग में दे सकता हूं। इन्होंने तो पहले से ही गणित का मार्ग स्वीकार कर लिया था। इनसे कहा गया था कि यहूदी दूना दाम माँगा करता है। इसलिए वह जितना माँगता था, स्काच साहब उससे आधा करते थे। जब यहूदी पाँच शिलिंग पर पहुँचा, तब तो स्काच महाशय ढाई शिलिंग पर उत्तर चुके थे। यहूदी धीरज खो बैठा और उखड़ कर बोला-"तुम तो पूरे मक्खीचूस मालूम होते हो । ले जाओ, यह छाता मुफ्त में।" ___ स्काच साहब विचार में पड़ गए। मामला टेढ़ा था, पर फिर भी गणित ने साथ दिया।' झटपट उन्होंने फैसला कर लिया और बोले,-"तो अच्छा एक नहीं, दो दे दो।” सुनने वाले लोग खिल. खिला उठे। पर स्काच को सन्तोष हो गया कि उन्होंने अपनी जाति की कंजूसी का सिक्का श्रोताओं पर जमा लिया।
कंजूसों का सरदार :
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