Book Title: Sagar ke Moti Author(s): Amarmuni Publisher: VeerayatanPage 39
________________ जो मिले, उसी से सीखिए मनु बहन गाँधीजी से गीता पढ़ती थी । परन्तु, उसका उच्चारण अशुद्ध रहता था। गाँधीजी ने पूछा - उच्चारण इतना अशुद्ध क्यों रहता है ? मनु बहन ने झिझकते स्वर में उत्तर दिया -- और विषयों में भले हजारों गुरु हों, लेकिन गीता का गुरु आपके सिवा दूसरा न हो, इसलिए मैं अपने आप ही सच्चे - झूठे उच्चारण और अर्थ करती रहती हूँ। दूसरे किसी की मदद लेकर आगे नहीं बढ़तो ।' इस बात से गाँधीजी को बहुत दुःख हुआ । वे कहने लगे । तुम्हारी इस इच्छा में झूठा मोह छिपा है। अच्छी चीज सीखने में हजारों क्या, लाखों गुरु भो हम क्यों न करें ? अच्छी बात को एक छोटे बच्चे के पास से भी हम क्यों न सीखें ? अच्छी चीज सीखने में लज्जा कैसी ? किसी बड़े से अच्छी बात सीखने की प्रतीक्षा में पास के किसी दूसरे साथी से कुछ न सीखना भी एक प्रकार का पाप है । चरखे का संगीत 1 एक बार रात को रेडियो पर बहुत ही सुन्दर कार्यक्रम आने वाला था । सब लोग सुनने की उत्कंठा में थे । गाँधीजी की पोती मनु बहन ने आग्रह करते हुए कहा - " बापू, आज तो आप भी रेडियो का कार्यक्रम सुनिए ।' बापू ने कहा---' उसमें क्या सुनना है ? इन रेडियो के भजनों को सुनने की अपेक्षा, तो हम चरखे का संगीत हो क्यों न सुनें ? ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only सागर के मोती : www.jainelibrary.orgPage Navigation
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