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जैसो रेखा, वैसी घोड़ी
एक सामुद्रिक शास्त्री ने घोषित किया कि "जिसके दाहिने पैर में ऊर्ध्वरेखा होती है, उसे सवारी के लिए घोड़ी मिलती है।"
श्रोताओं में से एक ने अपना पैर देखा, लेकिन ऊर्ध्वरेखा नहीं थी। तब उसने लोहे के एक चिमटे को गरम कर दाहिने पैर के तलवे में रेखा उपाड़ ली। घाव जरा गहर हो गया, भरा नहीं, सड़ गया । फलतः उ विस्तर पर पड़ जाना पड़ा और पैर हमेशा के लिए बेकार हो गया। अब उसे लकड़ी की घोड़ी के सहारे चलना पड़ता था। . - एक दिन मार्ग में पहले वाले सामुद्रिक शास्त्री से भेंट हो गई। उसने पूछा-"तुम्हारे कथनानुसार मैंने अपने पैर में ऊर्ध्वरेखा पैदा की, लेकिन मुझे सवारी के लिए घोड़ी तो नहीं मिली।"
सामुद्रिक शास्त्री ने कहा- "हमारा शास्त्र कभी झूठा निकलता ही नहीं। यदि तुम्हारी ऊर्ध्व - रेखा असली होती, तो असली-सच्ची घोड़ी मिलती। लेकिन, तुमने तो रेखा हाथ से बनाई है, अतः तुम्हें हाथ की बनी लकड़ी की घोड़ी मिली है। असली नहीं, नकली मिली, घोड़ी मिली तो सही । जैसी रेखा, वैसी घोड़ी।
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सागर के मोती :
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