________________
विरोधी पर विजय कैसे ?
एक बार सम्राट कुमारपाल की राज - सभा में बड़े - बड़े विद्वान् यथास्थान सिंहासनों पर बैठे हुए थे और एक गंभीर दार्शनिक चर्चा चल रही थी। इतने में आचार्य हेमचन्द्र भी चर्चा में भाग लेने के लिए उपस्थित हुए।
आचार्यजी को आते देखकर एक ईर्ष्यालु पण्डित ने मजाक उड़ाते हुए कहा-अच्छा हेम ग्वाला भी कंधे पर कमली और हाय में दण्ड लिए आ गया
"आगतो हेमगोपालो दण्ड - कम्बलमुद्वहन् ।” आचार्य हेमचन्द्र बड़ी ही गंभीर प्रकृति के सन्त थे। भरी सभा में अपमान होने पर भी उत्तेजित न हुए। उन्होंने मुस्कराते हुए उत्तर दिया-आपने ठीक कहा है। अनेकान्तवादी जैन - दर्शन के विराट् मार्ग में एकान्तवादी षड्दर्शन रूप पशुओं को चराने वाला मैं ग्वाला ही तो हूँ, इसमें असत्य क्या ?
"षड् - दर्शन - पशु प्रायश्चिायन् जैनवाटके।" एक मधुर मुस्कराहट के साथ की गई गहरी चोट ने विरोधी को चरणों में ला गिराया । सारी सभा में आ चाय जी का जयजयकार गूंज उठा।
विरोधी पर विजय कैसे ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org