Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

Previous | Next

Page 30
________________ ज्ञान अनन्त है कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा गया है कि ऋषि भारद्वाज ने जीवन - भर तपस्या की । प्रसन्न होकर इन्द्र प्रकट हुए और भारद्वाज से पूछा- “यदि तुम्हें एक जन्म और मिले, तो तुम उस जन्म में क्या करोगे ?" भारद्वाज ने उत्तर दिया-"मैं इस जन्म के समान ही तपस्या करता हुआ उस जन्म में भी वेदाध्ययन करूंगा।" देवाधिपति इन्द्र ने पुनः प्रश्न किया-"यदि तुम्हें पुनः एक जन्म और मिले. तो क्या करोगे ?" भारद्वाज ने इस वार भी दृढ़ता पूर्वक उत्तर दिया-“मैं उस जन्म में भी तप करता हुआ वेदों का स्वाध्याय करूंगा।' इस उत्तर के साथ ही भारद्वाज के सामने तीन पर्वत प्रकट हुए। इन्द्र ने उन तीनों में से एक मुट्ठी - भर कर कहा-- "भारद्वाज ! अब तक वेदों को पढ़ कर जो कुछ ज्ञान तुमने प्राप्त किया है और दूसरे जन्मों में भी जो कुछ ज्ञान पाओगे, वह सब इन पर्वतों की तुलना में मुट्ठी के समान है । वेद तो अनन्त हैं "अनन्ता वै वेदाः।" यह कहानी सत्य - ज्ञान की अनन्तता पर कितना सुन्दर प्रकाश डालती है ! ज्ञान अनन्त है: २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96