Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 26
________________ मेलबोर्न से लंदन गई। और अब चार - सौ मील प्रति घन्टे के वेग से समस्त संसार के आर - पार उड़ आई हूँ।" ___ शान्त और संयमी वृद्ध ने साठ वर्ष के भावनामय जीवन से प्रेरित होकर प्रश्न किया-"इतनी शीघ्रता किसलिए ?" . ___ तरुणी चुप थी। उसे कोई उत्तर सहीं मिल रहा था। आखिर इस दौड़ - धूप का कोई उद्देश्य ? यह पूर्व का प्रश्न है, जो पश्चिम से ठोक उत्तर की माँग कर रहा है। इतना उतावलापन किसलिए? एक - दूसरे का विनाश करने के लिए ? मानव का स्वातन्त्र्य और स्वाभिमान छीन लेने के लिए ? मानव को अपने श्रम से जो सुख - सुविधा प्राप्त है, उसे हर लेने के लिए ? मैं भी उस वृद्ध भिक्षु का प्रश्न पुनः पूछ लेता है-यह सब जल्दबाजी किसलिए? शुभ काम स्वयं आशीर्वाद है ? राजस्थान की एक सुप्रसिद्ध सेविका के सम्मान में एक विशाल अभिनन्दन-समारोह का विराट् आयोजन किया जा रहा था। उसकी सफलता के लिए गाँधीजी से आशीर्वाद माँगा गया। गाँधीजी ने लिखा--"शुद्ध सत्य तो यह है कि किसी भी शुभ काम में किसी के आशीर्वाद की आवश्यकता ही नहीं होती। क्योंकि शुभ काम स्वयं ही आशीर्वाद रूप होता है। उसी में उसकी सफलता है।" यह सब किस लिए? १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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