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यह सब किसलिए ?
गगन चुम्बी हिमगिरि के शिखरों के बीच तिब्बत में एक वृद्ध बौद्ध भिक्षु रहता था । साठ वर्ष की तपस्या द्वारा उसने शान्ति प्राप्त की थी । पल पल में 'बुद्ध ं शरणं गच्छामि' रट-रट कर उसने अपने अन्दर की पशु वृत्ति को वश में कर लिया था । सनातन हिम का दर्शन करके उसकी दृष्टि निर्मल हो गई थी । वह सुखी था, शान्त था भावनामय जीवन का आनन्द उसने प्राप्त किया था । अनुकम्पा से द्रवीभूत होकर उसने सारे जगत् को अपने में लपेट लिया था ।
उसके पास इक्कीस वर्ष की एक आस्ट्रेलियन विमानविहारिणी नव- युवती आई । बाल्यावस्था से ही उसने विज्ञान को तथा विज्ञान द्वारा प्राप्त शक्ति को अपना लिया था । गर्व के साथ वह वृद्ध साधु के पास आई। वह समझ रही थी, पाषाणसा जड़ वह साधु निकम्मा है । वृद्ध की ओर तिरस्कार पूर्वक निहारते हुए युवती ने अपना परिचय दिया
"मैं इक्कीस वर्ष की तरुणी हूँ। मैं विमान विहारिणी हूँ । इस विषय में मेरे जितना योग्य और कोई नहीं ।"
वृद्ध ने पूछा - "तुमने क्या किया है ?"
तरुणी ने कहा - " मैं उन्नीस वर्ष की थी, तब एक घण्टे में दो सौ मील की गति से मेलबोर्न से उड़ कर बम्बई आई थी। बीस वर्ष की हुई, तब तीन मील प्रति घण्टे की चाल से
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सागर के मोती :
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