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'क्या करें' का प्रश्न ही क्यों ?
गांधीजी ने लम्बे उपवास शुरू कर रखे थे। उपवास में वे जिन्दा रहेंगे या मर जाएँगे, इसका किसको पता था ? सब ओर एक भय और आशंका का वातावरण घनीभूत हो रहा था ! इस पर आश्रम के भाइयों ने उनसे पूछा- "आप यदि उपवास में चल बसे, तो हम कौन-सा काम करें?
गांधीजी ने जबाब दिया-"इस तरह का सवाल ही आपके सामने कैसे खड़ा हुआ ? मैंने आपके लिए काफी काम रख छोड़ है। हिन्दुस्तान में खादी तैयार करनी है, खादी का शास्त्र बनान है। जात-पात की बीमारी को दूर करना है। भूखे देश के लिए रोटियों को प्रबन्ध करना है। इतना बड़ा काम आपके लिए हो हुए भी आपको 'क्या करें ?' ऐसी चिन्ता क्यों होती है ?
संसार में कार्य को कमी नहीं, काम करने वालों की कर्म है। मनुष्य के जीवन में क्या करें' का प्रश्न हो क्यों पैदा हो जबकि उसके चारों ओर काम का क्षीर-सागर ठाठे मार रहा है।
'क्या करें' का प्रश्न ही क्यों ? :
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