Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 16
________________ अहिंसा या हिंसा एक चोर एक भिक्षु को बहुत तंग करता था। भिक्षु बेचारा बहुत असमर्थ था, करता भी क्या ? चोर अपनी हरकत से बाज नहीं आता था। एक दिन चोर ने साधु को बहुत तंग किया । साधु ने भी उससे तंग आकर एक रज्जु - यन्त्र बना रखा था । साधु की वस्तुएँ लेते समय चोर का हाथ उस रज्जु-यन्त्र पर पड़ गया और वह उससे अपने आप ही बन्ध गया। चोर के बन्ध जाने पर भिक्षु ने उसकी पीठ पर खासा अच्छा प्रहार किया, और कहा "बुद्ध सरणं गच्छामि।" फिर दूसरा प्रहार किया और कहा "धम्म सरणं गच्छामि।" फिर तीसरा प्रहार किया और कहा "संघ सरणं गच्छामि ।” तीनों प्रहारों से चोर तिलमिला गया और कहा कि मुझे अब छोड़ दो, जो तुम कहोगे, वही करूंगा। भिक्षु ने उसे छोड़ दिया। . तब चोर ने भिक्षु से कहा कि यह तो बड़ा कुशल था कि कृपालु बुद्ध ने तीन ही शरण का विधान किया था। यदि कहीं अधिक शरण का विधान होता, तो तुम मुझे मार ही डालते। -दिव्यावदान [चीनी ग्रन्थ] अहसा या 'हसा: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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