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TITLE. -२०
__रत्नमालामा - 35 अईतू वचन की वन्दना सारं यत्सर्वसारेषु वन्यं यदंदितेष्वपि। अनेकान्तमयं वन्दे तदर्हलचनं सदा।।२
अन्वयार्थ
यत् सर्वसारेषु
सर्व सारों में सारभूत है
सारम्
यत्
वन्द्यम् तत्
वंदितेषु
नमस्करणियों में अपि
नमस्करणीय है
उस अनेकान्तमयम्
अनेकान्तमयी अर्हत्वचनम्
अर्हत वचन को (मैं) सदा
सर्वदा वन्दे
नमस्कार करता हूँ। (ज्ञातव्य है कि श्रावकाचार संग्रह में “यत्सर्व सारेषु" की जगह "यत्सर्व शास्त्रेषु"
अर्थ :- समस्त सारभूत वस्तुओं में जो सारभूत है, जो वन्दनियों में भी परम वन्द्य हैं, | ऐसे अनेकान्तमयी जिन वचनों को मेरा सदा नमस्कार हो। भावार्थ :- आचार्य सिध्दसेन दिवाकर ने लिखा है कि
जेण विणा लोगस्स वि, ववहारी सव्वहा न निवडइ।
तस्स भुवणेक्क गुरुणो. णमो अणेगन्त वायस्स।। अर्थ :- जिसके विना लोक व्यवहार भी सर्वथा चलता नहीं, उस भुवन के अद्वितीय | गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार है। _ अनेकान्त की परिभाषा करते हुए आ. धर्मभूषण लिखते हैं कि अनेके अन्ता धर्माः सामान्यविशेषा पर्याया गुणा यस्येति सिध्दाऽनेकान्तः। (न्यायदीपिका ३/७६) जिसके सामान्यविशेष पर्याय और गुण रूप अनेक अन्त या धर्म हैं, वह अनेकान्त रूप सिद्ध होता है। ___ अनेकान्त में अनेक और अन्त ये दो शब्द है। अनेक शब्द एकाधिक संख्या को | अभिव्यक्त करता है। अन्त शब्द के अनेक अर्थ है। यथा-निकट-अन्तिम-सुन्दर-सीमा,
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