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मालासुविािसागरला साय ३, अथवा वीरता करते हैं. शूरता करते हैं, विक्रमशाली हैं अर्थात् कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं, वे वीर हैं।।
४. ये वीर भगवान् , श्री वर्धमान्, सन्मति, अतिवीर और महतिमहावीर इन पाँच नामों से प्रसिद्ध श्री सिद्धार्थ महाराज के पुत्र अंतिम तीर्थकर हैं।
५. अथवा "वीर" शब्द का चौथा अर्थ करते हैं - "कदपय" इत्यादि श्लोक का अर्थ | है। क से झ तक अक्षरों में से क्रम से १ आदि से ९ तक अंक लेना। ट से घ तक भी क्रम से १ से ९ तक अंक लेना। प वर्ग से क्रमशः ५ तक अंक लेना और "य र ल व श ष सह" इन आठ से क्रमशः ८ तक अंक लेना। इन में जो स्वर आ जावें या ञ और न आवें तो उनसे शून्य (0) लेना। इस सूत्र के नियम से वीर शब्द में वकार से ४ का अंक और रकार से २ का अंक लेना। तथा "अङ्कानां वामतो गतिः" इस सूत्र के अनुसार अंकों को उलटे से लिखना होता है। इसलिए "२५ अंक आ गया। वीर शब्द के इस २४ अंक से आदिनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकरों का भी ग्रहण हो जाता है। जिससे चौबीसों तीर्थकरों को भी नमस्कार किया गया है, यह समझना।
कैसे हैं, वे धीर प्रभु?
१. सर्वज्ञ हैं :- सर्वज्ञ की परिभाषा करते हुए आ. प्रभाचन्द्र लिखते हैं कि सर्वतो यावनिखिलार्य साक्षात्कारी(रत्नकरण्ड प्रावकाचार-७) जो सम्पूर्ण पदार्थों का साक्षात्कार करता है, वह सर्वज्ञ है।
विश्व, कृत्स्न और सर्व ये तीनों शब्द एकार्थवाचक हैं। सर्व शब्द का अर्थ है-अशेष तथा ज्ञ शब्द कर्त्तावाचक है, उसका अर्थ है जाननेवाला | जो अशेष वस्तुओं को जाने, वह सर्वज्ञ है। ___ सर्वझ का दूसरा नाम है, केवली। जो जीव चराचर में स्थित सम्पूर्ण द्रव्यों को उनके सम्पूर्ण गुण और त्रिकालवी पर्यायों सहित जानता है, वह सर्वज्ञ है। यहाँ सर्वज्ञ वीर प्रभु का प्रथम विशेषण है-जो इस बात को सिद्ध करता है कि वे सर्व वस्तुओं के ज्ञाता
"वन्दे तद्गुण लब्धये" इसी उद्देश से सर्व प्रथम इस गुण का स्मरण किया गया है।
२. सर्वबागीश हैं :- स्याद्वाद की प्ररूपणा करने वाले सम्पूर्ण वाक यानि वचनों में अथवा वक्ताओं में वे ईश यानि स्वामी हैं।
३. मारमदापह :- कामदेव की शक्ति को नष्ट करनेवाले हैं।
भगवान् में तीन गुण होने चाहिये-वीतरागता-सर्वज्ञता व हितोपदेशिता। उपर्युक्त श्लोक में मारमदापह विशेषण वीतरागत्व का प्रतिनिधि है, सर्वज्ञ शब्द सर्वज्ञता का द्योतक है, तो सर्व वागीश विशेषण हितोपदेशीत्व का प्रदर्शक है।
ग्रंथकार कहते हैं कि मोहनीय कर्म के शमन हेतु व मुक्ति लाभ करने हेतु. मैं वीर | प्रभु को नमस्कार करता हूँ। YAT सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशठा संस्था, औरंगाबाद.