Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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सिद्धान्त
१३१
Animadity
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६४ गोम्नटसार (कर्मकांड ) भाषा-मूलका-श्री नेमिचंद्राचार्य ! भाषाकार-पं० हेमराज 1 पत्र सं. =५ : माइज-:४५६ इञ्च | भाषा-हिन्दी (गद्य) । विषय-सिद्धान्त । रचनाकाल x 1 लेखनकाल-सं० १.१७ प्राप्तोज बुदी ११ । पर्ण एवं शुद्ध ! दशा-जीर्ण । वेष्टन नं ० ३४१ ।
विशेष-श्रीकल्याया पहाड्या ने अन्य को रामपुर में लिखवाया था।
६५ प्रति नं०२। पत्र सं... । साइज-१२४२, इन्न । लेखनकाल ४ | पूर्ण एवं शुद्ध । दशा-सामान ! वेन. ३४२ ।
६६ चतुर्दश गुणस्थान भाषा-अखयराज । पत्र सं० ५१ । साइज--१२४६३ रन । भाषा-हिन्दी | विषय-- चनी । रचनाकाल x | लेखन काल ४ । अवणे -प्रारम्भ के २ तथा अन्तिम पत्र नहीं है । वेष्टन नं0 3८ : 1
६७ प्रति ०२ । पत्र सं० ६.१ । साइज-१.०४६ इञ्च । 'लेखनकाल-सं, १७६।। पूर्ण एवं शुद्ध E. दशा-जीर्ण । वेष्टन नं. ३८४ । ६प्रति नं. ३ ० ७२ : ना..:
टगाल-सं० १७३१ चैत्र सुदो । ___अपूर्ण-प्रयम पत्र नहीं है । सामान्य शुद्ध | दशा-सामान्य । वेष्टन नं० ३१७ ।
विशेष-राइमल्ल के पुत्र श्री विहारीदास द्वादका ने महात्मा गरसो के पास लिखवाया था। - ६६ गुणस्थानचर्चा..... पत्र सं १०४ ! साइज-१४४८ इञ्च | भाषा-हिन्दी । विषय-चर्छ । चना' काल x | लेखनकाल–सं. १८५० माह बुदी २ । पूर्ण एवं शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन ने० ३१८ । "
विशेष-विषय का वर्णन अंकों में किया गया है । सांगानेर में गोदोकों के मन्दिर में प्रतिलिपि हुई थी।
७. चरचाशतक-धानतराय । पत्र सं० ८७ ! साइज-१२३४५६ इञ्च । माषा-हिन्दी । विषय-चर्चा । रचनाकाल X । लेखनकाल X । पूर्ण एवं शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन नं ० ४.७१
विशेष- चरचा शतक के हिन्दी पद्यों का अर्थ श्री हरजोमल पानीपत वाले का दिया हुआ है ।
७१ प्रति नं. २१ पत्र सं० ४१ । साइज १३x८ इश्व ! लेखनकाल सं० १६० । अपूर्ण-प्रारन्म के २० पत्र नहीं है । शुद्ध । दशा-सामान्य । वेटन नं० ४०६ ।
७२ चरचासमाधान । भूधरदासजी । पत्र स० 1 साइज-१२४५३ । भाषा-हिन्दी । विषय-चर्चा | रचनाकाल-सं० १८०६ । लेखनकाल-सं० १८१५ | पूर्ण एवं शुद्ध | दशा-सामान्य ! वेष्टन नं ४०८ ।
विशेष-सामाप्ति के पक्षात् यह लिखा हुआ है कि भूधरदासजी ने १२८ के प्रश्नों का उत्तर लिखे जिनमें प्रश्न जोस तीस का उत्तर अभ्यास के अनुसार है शेष प्रश्नों का उत्तर अभ्यास के अनुसार मिलता नहीं ।यह मत टोडरमलजी ने निश्चित किया है । अन्त में यह भी लिखा है कि भूधरदासजी से टोडरमल जी शास्त्रों के अधिक झाता है इसलिये उनकी बात पर विश्वास करना चाहिये।
७३ प्रति न०२। पत्र सं० ७८ | साइज-12x म । लेखन काल-सं० १८२३ । पूर्थ एवं शुद्ध । दश-जीर्ण । वेष्टन नं. ४०६ |