Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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'ज्योतिष ]
१६२६ योगसार | पत्र सं० ३४-२०३ | साइज - १२X४ इञ्च रचनाकाल × । लेखनकाल x | पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध दशा- जी | वेष्टन नं ० १४८० |
१६३० योगरत्नावली - परमशिवाचार्य पं० श्रीकृष्ण | पत्रसं० २ | साइज - ११४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय- आयुर्वेद । रचनाकाल x 1 लेखनकाल : पूर्ण एवं शुद्ध दशा - सानाम्य | वेष्टन नं ० १४६६ | विशेष — केवल रसायन विधि नामक लडा परिच्छेद है ।
१६३२ योगचिन्तामणि हर्षकीर्ति । पत्र सं० ६० साइज - १०x४ इञ्च । भाषा-संस्कृत | विषय - श्रायुर्वेद | रचनाकाल × । लेखनश्चल-सं० १६६३ पूर्ण एवं शुद्ध | दशा - सामान्य | वेष्टन नं० १४७२ ।
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१६३२ शतश्लोकवैद्यक व्योपदेव | पत्र सं० | साइज - १०३४४३ इन्च | भाषा-संस्कृत विषय त्रायुर्वेद | रचनाकाल X लेखनकाल x । पूर्ण एव शुद्ध । दशा- सामान्य । वेष्टन नं० १६०२ ।
१६३३ शार्ङ्गधर संहितः शाङ्ग घर । पत्र सं० ५६ | साइज - १०x४ इव । भाषा-संस्कृत | त्रिषत्र — षायुर्वेद ' रचनाकाल X | लेखनकाल | एवं सामान्य शुद्ध । दशा जीर्ण । वेष्टन नं० १७०४ | १६३४ शार्ङ्गधरदीपिका - श्री भावसिंहात्मज "नारमल्ल” | पत्र सं० १५१ साइज - १२४६ इञ्च । भाषासंस्कृत । विषय-आयुर्वेद | रचनाकाल x 1 लेखनकाल X। पूर्ण एवं शुद्ध दशा - सामान्य | वेष्टन नं० १७०४ । १६३५ सुश्रुतसंहिता - श्री सुश्रुत | पत्र सं० २२० - २३२ | साइज - १२४५ इ | भाषा–संस्कृत । वित्रय— श्रायुर्वेद । रचनाकाल x । लेखनकाल X | अपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा- जीर्ण | बेष्टन नं० २१३७ |
२६३६ प्रति नं २ । पत्र सं० २०३ | साइज - १२५५ इञ्न | लेखनकाल - ० १६४ फागुण सुदी ७ | शरीराध्याय तक सामान्य शुद्ध | दशा-साना व त्रेप्टन नं० २१३६ ।
विशेष—प्रति संस्कृत टीका होत है टीकाकार श्री जयदास हैं।
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भाषा-संस्कृत विषय- त्रायुर्वेद |
विषय - ज्योतिषादि निमित्त - ज्ञान साहित्य
ग्रन्थ संख्या - ६६
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१६३७ अजदकेवली रचनाकाल ×। लेखनकाल | पूर्ण एवं शुद्ध
पत्र सं० २ | साइज - १०३४५ इञ्न । भाषा - हिन्दी | विषय - ज्योतिष | दशा सामान्य | वेष्टन नं० १६ |
१६३= अरिष्टाध्याय रचनाकाल X। लेखनकाल - सं० १९८० माघ
विशेष – हिन्दी में शब्दार्थ दिया
पत्र सं
कृष्णा
हुआ है ।
२४ साइज - १२४८ इव । भाषा प्राकृत | विषय - ज्योतिष शास्त्र | पूर्ण एवं शुद्ध दशा उत्तम 1 वेष्टन नं० ३० ।