Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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लोकविज्ञान ]
रचना की गयी । पद्म सं० २३२ |
१५०३ प्रति नं० २ । पत्र०१५ | साइज - ११४५३ इव । लेखनकाल x | पूर्ण एवं शुद्ध । दशासामान्य | वेष्टन नं ० ६७७ ।
२८५
१८०४ प्रति नं० ३ | पत्र सं० १८ | साइज - १०३ x ५ इन्च | लेखनकाल X | पूर्ण एवं शुद्ध । दशासामान्य । वेष्टन नं० ६७५ ।
१६०५ त्रिलोकसार भाषा" | पत्र सं० ३१ | साइज - १४६७ ह । माषा - हिन्दी | विषय-लोकविज्ञान रचनाकाल x | लेखनकाल । श्रपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा - सामान्य | वेष्टन नं० ६७१ (क) ।
१८०६ त्रिलोकसार दर्पण कथा - श्री खड नसेन । पत्र सं० १२० | साइज - १३४६ इन्च | भाषा - हिन्दी । विषय-खोकविज्ञान | रचनाकाल - सं० १७०८ । लेखनकाल - १८०४ | पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध | लिपि - विकृत । दशासामान्य । वेष्टन नं० ६७६ ।
१८०७ प्रति नं० २ । पत्र सं० १०५ | साइज - ११४५ इन्च | लेखनकाल - सं० १७३८ | पूर्ण एवं शुद्ध | दशा - सामान्य | वेष्टन नं० ६८० ।
१८०८ त्रिलोकदीपक - इन्द्रवामदेव पत्र ०८६ | साइज - १०४४३ च । भाषा-संस्कृत | विषय - लोकविज्ञान | रचनाकाल x 1 लेखनकाल x | पूर्ण एवं शुद्ध । दशा- सामान्य | वेष्टन नं० ६८६ |
१८०६ त्रिलोकदीपक गुणभूषण 1 पत्र सं० १ १ साइज - १५x१० इञ्च । भाषा - संस्कृत । विषय-लोकविहान | रचनाकाल >x | लेखनकाल - सं० १८६३ वैशाख सुदी १ । पूर्ण एवं शुद्ध । दशा उत्तम । वेष्टन नं० ६१० | विशेष – विषय को रेखाचियों द्वारा समझाया गया है । रेखाचित्र रंगीन हैं ।
१८१० त्रिलोकस्थिति
पत्र सं० ६ । साइज - १०x४ इञ्च । भाषा - संस्कृत - प्राकृत | विषय - लोकविज्ञान | रचनाकाल > । लेखनकाल । त्रपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध दशा - सामान्य | वेष्टन नं० ६६१ ।
१८११ मजलसराय पानीपत वाले का पत्र १ पत्र सं० १ | साइज - १२४७ इव । माषा - हिन्दी । विषय-यात्रावर्णन | रचनाकाल - सं० १८२२ | लेखनकाल- सं० १५२२ | पूर्णं एवं शुद्ध । दशा- जीर्णं । वेष्टन नं० १३७२ | विशेष-श्री मजलसराय गोमट्ट त्वामी की यात्रा करने गये थे । यात्रा से लौटने के पश्चात् हैदराबाद ( दक्षिण )
से उन्होंने भा० उनसेन पानीपतवालों को अपनी यात्रा का वर्णन लिखा है । पत्र महत्त्वपूर्ण है ।
१८१२ सूर्यप्रज्ञप्ति टीका" - पत्र सं० १३६ | साइज - १०x४३ ख | भाषा-संस्कृत | विषय - लोक विज्ञान | रचनाकाल x | लेखनकाल x 1 पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध
दशा- जीर्ण । वेष्टन नं० २१५२ ॥
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