Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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विषय-रस एवं अलंकार
प्रन्थ संख्या-३०
१७३२ श्रमरूकशतफ-मूला -अमुरू! पत्र सं० ५। साइज--११४११ इन। मामा-संस्कृत विषय--अलंकारशास्त्र । रचनाकाल X । लेखनकाल X । पूर्ण एवं शुद्ध । दशा--सामान्य । वेपन नं० २८ ।
विशेष प्रति संमत टीका सहित है। टीकाकार श्री चतुर्भुज हैं।
१७३३ कविकल्पलता-वाग्भट्ट सुत श्री देवेश्वर । पत्र सं० २२। साइज-१०४४३ इञ्च । माषा-संस्कृत। विषय-अलकारशास्त्र । रचनाकान। लेखनकाल | अपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध | दशा-सामान्य । वेष्टन नं. २५३ ।
विशेष-प्रथम पध-इस प्रकार है । मालवेंद्रमहामात्यः श्रीमद्वाग्भट्टनंदनः । देवेश्वरः अतनुते कविकल्पलतामिम ।।
१७३४ कविमुखमंडन-4 बानमेरुमुनि । पत्र सं० १, | साइज-2x४ इञ्च | भाषा-संस्कृत । विषयअलंकारशास्त्र । रचनाकाल x | लेखनकाल ४ ! अपूर्ण-प्रथम पत्र नहीं है । सामान्य शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन नं० २।४।।
विशेष-दौलतखा के लिये शास्त्र रचना की गयी थी ऐसा कवि ने उल्लेख किया है। फतहपुर में इसकी प्रतिलिपि हुई थी।
१७३५ काव्यप्रकाश-मम्मट । पत्र सं. १४६ ! साइज-१०४४ इन। भाषा-संस्कृत। विषय-अलंकार । शास्त्र । रचनाकाल ४ । लेखनकाल ४ । पूर्ण एवं शुद्ध ! दशा-उत्तम । वेष्टन नं० २६१ ।
विशेष-प्रति संस्कृत टीका सहित है। टीकाकार श्री वैद्यनाथ है । टीका का नाम उदाहरण चन्द्रिका है।
१७३६ प्रति नं.२ । पत्र सं० ७ । साइज-१.४५ इन्च । लेखनकाल ४। पूर्ण एवं शुद्ध | दशासामान्य । वेष्टन नं ० २६२ ।
विशेष--मूल कारिकाओं का संग्रह है।
१७३७ प्रति नं०३ । पत्र सं० ४१-६६ | साइज-११४ इञ्च । लेखनकाल-in ११ फाल्गुण शुक्ला प्रतिपदा । अपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा-उत्तम । वेष्टन नं० २६ ।
विशेष--जय चन्द्रजी ने नन्दलाल के पठनार्थ प्रतिलिपि की थी।
१७३८ काव्यप्रदीप-महामहोपाध्याय श्री गोबिन्द | पत्र सं० १५० | साइज-१३४६५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-अलकारशास्त्र । रचनाकाल X । लेखन काल-सं० १८४० वैशाख सुदी १० । पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा-उत्तम । वेष्टन नं० २६३।
विशेष-गोविन्दराम दधीचि ने जयपुर में प्रतिलिपि की थी। प्रति संस्कृत टीका सहित है । टोकाकार श्री वैधनाम है। रीकाकार विठ्ठलसूरि के पौत्र एवं रामभट्ट के पुत्र थे।
-शस्त्र
स-स
Muna
musal
Viract