Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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पुराण]
२०६
विशेष- लेखक प्रशस्ति विस्तृत है । संग्रामपुर में महाराजा मानसिंह के शासनकाल में अग्रवाल जाति में उपन साह श्री लूपा ने इस अन्य को लिखवाया था।
१५४ प्रति नं ५। पत्र सं० ३४४ । साइज-१११४५ इञ्च । लेखनकाल-सं० १५६७ फागुण सुदौ १३ ॥ पूर्व एवं शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन नं. ८ ।
विशेष-प्रति सचित्र है। चित्र सं० १०० से अधिक है। चित्र अच्छे हैं। चित्रों में मुगलकालीन कला न होकर भारतीय कला के दर्शन होते हैं । चित्रों के पास संस्कृत में संक्षिप्त परिचय दिया हुआ है। चौधरी राइमन्ल ने सचित्र प्रतिलिपि करवायी थी। तथा हरिनाय कायस्य ने प्रतिलिपि की थी।
६५५ प्रति न०६। पत्र सं. २०८ | साइज-1.४५श्व | लेखन काल-न. १६०६ माष बुदी ३ । सोमवार । पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा--सामान्य । वेष्टन नं. ६.
विशेष-बादशाह जहांगीर के शासनकाल में प्रतिलिपि हुई मी ।
६५६ प्रति नं० ७ । पत्र स. ८२ । साइज-:४४ इश्च । लेखनकाल-सं० १४७७ वैशाख वुदी २ । पूर्व एवं शुद्ध । दशा-सामान्य जीर्ण । वेष्टन नं० ११ ॥
___विशेष-लेखक प्रशस्ति महत्त्वपूर्ण है। श्री नरेन्द्रकीर्ति ने प्रतिलिपि की मी । संवत् १५६५ में संगही माधो ने ET पुस्तक बुडाकर पं० छीतर को पठनार्थ दी थी।
एक नवीन पत्र पर सं० १६५२ चैत्र बुदी ३ को भी लेखक प्रशस्ति लिखी गई है लेकिन वह अपूर्ण है।
६५७ प्रति नं०८ । पत्र सं० १७१ । साइज-११४४, इश्च । लेखनकाल X । अपूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन नं० २ |
विशेष-संस्कृत में संकेत दिये हुये हैं।
१५८ आदिपुराण टीका-प्रमाचन्द । पत्र सं. ८४। साइज-११४५३ इन्च | माषा-संस्कृत । रचनाकाल ४ । लेखनकाल-सं० १५६६ माघ सुदी १२ । पूर्ण एच शुद्ध । दशा-सामान्य । वैटन नं० ६३ ।
विशेष-ग्रन्थ का एक भाग फटा हुआ है।
६५६. आदिपुराण-जिनसेनाचार्य । पत्र सं. ४६६ । साइज-१२४५ इन्च । भाषा-संस्कृत । विषयपुराण । रचनाकाल X । लेखनकाल X । पूर्ण एवं सामान्य शुद्ध । दशा--सामान्य । वेष्टन ने. १५ |
. विशेष-~अन्तिम ४५ पत्र फिर लिखाये गये हैं । अन्तिम ५ अध्याय प्रा० जिनसेन के शिष्य श्रा० गुणभद के रचे दुर्य है।
६६० प्रति न०२। पत्र सं० ७६३ । साइज-१३४६ इन्च | लेखनकाल-सं० १६६३ चैत्र सुदी ।। पूर्ण एवं शुद्ध । दशा-सामान्य । वेष्टन न० ६४ |
विशेष-प्रति सचित्र है। २०० से अधिक चित्र है। महाराजा मानसिंह के शासनकाल में मट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति तस्माता प्राचार्य खेमचन्द के प्राम्नाय में खण्डेल