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वस्त्रोवेष्टित साधु : दयामूर्ति कृष्णामेनन
केरल के सम्राट के प्रधानमंत्री के यशस्वी कुल में जन्मे महाप्रज्ञावान्, दयामूर्ति, प्राणीमात्र के प्रति वात्सल्यभाव के धनी विश्वविख्यात भारती प्रतिभाय का नाम था 'कृष्णा मेनन' जी। उनका व्यक्तित्व इतना महान् था, कि उनके विचारों एवं कार्यों के समक्ष आज के अतिविशिष्ट व्यक्तित्व भी बौने प्रतीत होते हैं। किसी पशु-विशेष की रक्षा के लिए आन्दोलन छेड़ने वाले लोग इस जैनकुल में जन्म-ग्रहण न करने पर भी जैनत्व की “मा हिंस्यात् सर्वभूतानि" की व्यापक दृष्टि को आत्मसात् करनेवाली महान् विभूति के जीवन-दर्शन को जानकर अपने लक्ष्य एवं निर्देशों का पुनर्विचार करें। 'सत्य' या 'धर्म' आन्दोलनों का विषय नहीं है, अपितु वह जीवन में उतारने एवं अपनी दृष्टि को तदनुरूप व्यापक बनाने के लिए होता है। अन्यथा “सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं" की भावना 'चर्चा' का विषय बनकर रह जायेगी. 'चर्या' का विषय नहीं बन पायेगी।
कालजयी व्यक्तित्व श्री कृष्णा मेनन जी भारतीय दर्शन एवं तुलनात्मक दर्शनशास्त्र के अधिकारी विद्वान् एवं साधक मनीषी थे। जब उनके पिता ने वकालत की पढ़ाई के लिए दो वर्ष के लिए ब्रिटेन भेजा, तो वे वहाँ दो वर्ष तक मात्र दर्शनशास्त्र का ही अध्ययन करते रहे। जब उनके पिता ने उन्हें चेतावनी दी, तब उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूर्ण की। उन्होंने दर्शनों को चर्चा एवं शकज्ञान का विषय नहीं बनाया था. अपित आत्मसात भी किया था। वे उच्चतम प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी एक महान् आध्यात्मिक साधक थे। उनके इस विराट किंतु निस्पृह व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत करने के लिए सद्य प्रकाशित पुस्तक 'Krishna Menon and Contemporary Politics' (लेखक-दलजीत सेन आदिल एवं प्रकाशक-इन्स्टीट्यूट फॉर सोशलिस्ट एजूकेशन, सेक्यूलर हाउस, नई दिल्ली-67) के एक पृष्ठ (पृ०सं० 230) का मूल अंग्रेजी अंश हिन्दी-रूपान्तर के साथ यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
-सम्पादक
On another occasion, Krishna Menon, then High Commissioner in UK, while going in a lift in the High Commissioner's office in London saw a young lift-operator in a sad and melancholy mood. On being asked, the lift-operator told him that he had lost his wrist watch. Without entertaining a sccond thought, Krishna Menon immediately gave his costly wrist watch to him and asked him to cheer up. There was sudden glow on the face of the lift-operator who thanked him for the
gift.
A Friend on animals
Krishna Menon disliked the idea of a man going in a cart drive by a 'poor' horse, whipped up mercilessly time and again. He never rode a horse or an elephant thought there were a number of elephants in his ancestoral home in the youthful days of his life.
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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