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की प्रक्रिया में विश्वास रखनेवाली आदर्श नायिका है।
जब हम सीता-विषयक श्रमणेतर - साहित्य को देखते हैं, उसमें कुछ प्रसंगों में मौलिक अन्तर दृष्टिगोचर होता है । यह अन्तर वस्तुतः विचारभेद अथवा दृष्टि-भेद के कारण ही है । यथा—'वाल्मीकि रामायण' में सीताहरण के प्रसंग में बतलाया गया है कि वह एक स्वर्ण-मृग को देखते ही उस पर आकर्षित हो जाती है और उसके स्वर्णाभ- चर्म की उपलब्धि के लिए वह राम को उसके वध के निमित्त भेजती है । किन्तु श्रमण-परम्परा की सीता अपने मनोविनोद तथा अपने शरीरसुख के लिए किसी निरपराध प्राणी की हिंसा कराये—यह उसके लिए सम्भव नहीं; अतः स्वयम्भू ने सीताहरण के प्रसंग में घटना को अहिंसक मोड़ दिया है।
शम्बूक की मृत्यु के पश्चात् जब लक्ष्मण खर-दूषण के साथ युद्ध कर रहा था, तभी रावण ने राम को भ्रम में डालने के लिए अपनी 'अवलोकिनी विद्या' के द्वारा सिंहनाद करवा दिया। राम ने उसे लक्ष्मण का आर्तस्वर समझा और वे सीता को अकेली छोड़कर लक्ष्मण की सहायतार्थ पहुँच जाते हैं और इधर अवसर पाते ही रावण सीता का अपहरण कर ले जाता है। 18
यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि श्रमणेतर रामकथाओं में सीताहरण से पूर्व सीता लक्ष्मण के प्रति लांछनापूर्ण कठोर शब्दों का प्रयोग कर उसे अपमानित करती है, किन्तु श्रमण-लेखकों ने सीता के इस प्रकार के स्वभाव का भूलकर भी उल्लेख नहीं किया ।
कैकेयी: कैकेयी राजा दशरथ की पत्नी एवं भरत की माता है । उसका चरित्र अन्य रामकथाओं में आदि से अन्त तक निन्दित एवं गर्हित कोटि का चित्रित किया गया. है। महाकवि स्वयम्भू ने भी प्रारम्भ में कुछ वैसा ही चित्रित किया है, किन्तु बाद में उसे ऊँचा उठाने का प्रयास किया है। उसका चरित्र कैसा ही रहा हो, किन्तु समीक्षा की दृष्टि से वह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि रामकथा के विकास में इस पात्र का अद्भुत सहयोग रहा है। यदि नारी पात्रों में कैकेयी का सृजन न किया जाता, तो रामकथा सम्भवतः सीता स्वयंवर तक ही सीमित होकर एक सामान्य पुराण एवं धर्मकथा मात्र रह जाती । ‘पउमचरिउ' में उसे राजनीति - चतुर, साहसी, वीरांगना, विचारपटु, सुअवसर से लाभ उठानेवाली एवं परिस्थितियों से प्रेरित माता के रूप में अंकित किया गया है।
अपने विवाह के बाद उत्पन्न स्थिति से अपने प्रियतम राजा दशरथ के रथ को हाँककर तथा विषमताओं के मध्य वह अपनी निर्भीकता, पराक्रम एवं कला-कौशल दिखलाकर प्रियतम से दो वरदान प्राप्त करती है और उन्हें उन्हीं के पास धरोहर के रूप में छोड़ देती है ।
राम के राज्याभिषेक की बात को सुनकर कैकेयी का मन भावी आशंका से व्याकुल हो उठता है। वह सोचने लगती है कि कहीं उसका पुत्र भरत राजगद्दी से वंचित न रह
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प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 199
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