Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 89
________________ बराबर या खलतिक पहाड:-गया-पटना रेल-पथ पर बेला स्टेशन से आठ मील पूर्व पर यह पहाड़ी स्थित है। इस पहाड़ी में सात प्राचीन गुफाएँ हैं, इसलिए इसे 'सतघरवा' भी कहते हैं। इनमें से तीन में अशोक के अभिलेख अंकित हैं। इनसे विदित होता है कि मूलत: इनका निर्माण अशोक के समय आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के निवास के लिए करवाया गया था। यह सम्प्रदाय बुद्ध के समकालीन आचार्य मक्खली गौसाल ने चलाया था। अशोक के अभिलेखों से उसकी सब धार्मिक सम्प्रदायों के साथ निष्पक्ष नीति का प्रमाण मिलता है। अशोक के अतिरिक्त उसके पौत्र दशरथ (जो जैन था) के अभिलेख भी इन गुफाओं में अंकित हैं। इसे 'नागार्जुनी गुफा' भी कहते हैं। इसमें परवर्तीकाल के अन्य अभिलेख भी मिलते हैं। मौखरि-वंश के अनन्तवर्मन का एक तिथिहीन अभिलेख का विषय यह है कि उसने गुहा-मंदिर में एक कृष्ण की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी। इन गुफाओं का वर्तमान नाम सुदामा, लोमष ऋषि, रामाश्रय, विश्व झोंपड़ी, गोपी, वेदायिक आदि है।' चम्पापुरी (भागलपुर):-जैन-ग्रंथ 'औपपातिक सूत्र' में तोरणों, प्राकारों, प्रासादों, उपवनों और बागों से अलंकृत एक नगर के रूप में इसका उल्लेख हुआ है। इसके अनुसार धन, ऐश्वर्य, आन्तरिक आनन्द एवं सुख से परिपूर्ण यह नगरी वस्तुत: धरती का स्वर्ग थी। यहीं वासुपूज्य नामक बारहवें तीर्थंकर उत्पन्न हुए थे, जिन्होंने केवलज्ञान और निर्वाण प्राप्त किया था। यहीं राजा करकण्डु ने कुण्ड सरोवर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा अधिष्ठित की थी। श्रेणिक के पुत्र कुणिक ने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् राजगृह त्यागकर चंपापुरी को अपनी राजधानी बनाया। इस नगर को चंपानगर, चंपामालिनी, चंपावती, चंपापुरी और चंपा आदि विविध नामों से पुकारा जाता था। यह अंगदेश की राजधानी थी। बुद्ध एवं महावीर के आगमन के कारण इस नगर की श्रीवृद्धि हुई थी।" मंदार पहाड़ी:-बिहार में भागलपुर से रेल और सड़कमार्ग से लगभग 45 कि०मी० दक्षिण में मंदार पहाड़ी अवस्थित है। यहाँ दूर-दूर से भारत के विभिन्न भागों से जैन तीर्थयात्री प्राय: आते हैं। इस पहाड़ी परं वासुपूज्य की स्मृतियों से संबंधित एक जैन-मंदिर है। जो जैनधर्म में बारहवें तीर्थंकर थे। इन्होंने चम्पानगर में जन्म ग्रहण किया था और संभवत: इसी पहाड़ी पर तपस्या करके कैवल्यज्ञान प्राप्त किया था। प्रकृति ने इसे सुन्दर रूप प्रदान किया है और यह आज भी तपस्या के लिए अनुकूल है। इस पहाड़ी पर दो गुफा हैं, जिसे प्रकृति ने तपस्वियों को शीत, ताप और वर्षा से रक्षा करने के लिए निर्मित किया है। यह वन्य-पशुओं से भी रक्षा का एक साधन रहा होगा। पहाड़ी 600 फीट की ऊँचाई पर सर्वदा जल उपलब्ध (वर्तमान समय में भी) रहता है। इसकी ऊँचाई लगभग 700 फीट है।" इस पहाड़ी से 3 मील दक्षिण में बौंसी' नामक स्थान पर एक प्राचीन जैनमंदिर भी है। पारसनाथ:—यह बिहार के हजारीबाग जिले में अवस्थित लगभग 5000 फीट ऊँची एक पहाड़ी है, जहाँ जैन-तीर्थयात्री प्राय: आते हैं। हिमालय के दक्षिण में यह सबसे ऊँचा पहाड़ है। यह न केवल पर्याप्त ऊँचाईवाला पहाड़ है, बल्कि यह अत्यन्त सुंदर भी है। इसके शिखर पर प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 4087

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