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एक दिगम्बर जैन मंदिर और इसके तल में भी कई दिगम्बर जैन मंदिर हैं। यह 'सम्मेदशिखर' नाम से भी विख्यात है। यह वन्य पशुओं से युक्त घने जंगल से आकीर्ण है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ निर्वाण-प्राप्ति से पूर्व इस पहाड़ी पर आये थे और उन्होंने यहीं मुक्ति प्राप्त की थी । "
पावापुरी:- इसका प्राचीन नाम 'पापा' या 'अपापपुरी' था। इसी स्थान पर भगवान् महावीर ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। वे 'पापा' राजा के वृष्टिपाल के प्रासाद के पीछे अनेक सरोवर के मध्य स्थित उच्चभागस्थ महामणि शिलातल पर रुके थे । यह स्थान बिहार में गिरियेक से तीन मील उत्तर में स्थित एक गाँव में अवस्थित है ।
भगवान् महावीर ने जिस स्थान पर नश्वर शरीर का परित्याग किया था, वहाँ सुन्दर जैन मंदिर बनवाये गये थे। उनके परिनिर्वाण की स्मृति के लिए भी भक्तजनों ने कार्तिककृष्ण अमावस्या की रात्रि को प्रकाश-सज्जा की प्रथा यह कहकर आरंभ की थी कि “चूँकि ज्ञान का प्रकाश चला गया, इसलिए हम सबको भौतिक पदार्थों के माध्यम से प्रकाश करना चाहिए।"
स्वामी विवेकानन्द चम्पानगर ( नाथनगर) भागलपुर के जैन-मंदिर को देखने आये थे और वहाँ उन्होंने जैनाचार्यों से धर्मालाप भी किया था।" मंदार (बाँसी) क्षेत्र के बच्चे विद्यालय में छुट्टी होते ही आज भी 'ओ ना मासी धं' का नारा लगाते, आनन्द और उल्लास का प्रकाश करते, घर की ओर दौड़ते आते हैं। संभवतः वे “ॐ नमः सिद्धम् ” ही कहते हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि पुराकाल में इस क्षेत्र पर जैनधर्म का व्यापक प्रभाव रहा होगा। पाद-टिप्पणी
1. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ० 97। 2. प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ० 445 (आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया एनुअल ) । 3. वही, पृ० 445 (आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, 1903-04, पृ० 74, रिपोर्ट 1903-04 पृ० 74 ) । 4. वही, पृ० 446 (सूत्राज, सैक्रेड बुक ऑफ द इस्ट, भाग-1, इन्ट्रोडक्शन, XI ) । 5. वही, सैक्रेड बुक ऑफ द इस्ट, पृ० 171, भागIII। 6. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ० 197। 7. वही, पृ० 610। 8. प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ० 360 (सम जैन कैनॉनिकल सूत्राज, पृ० 73 एवं 176 ) । 9. वही, पृ० 360 एवं ऐ० स्थाना० पृ० 321 तथा जैनिज्म इन नार्थ इंडिया, पृ० 26। 10. वही, पृ० 346 (एस० स्टीपैन्सन, हार्ट ऑफ जैनिज्म, पृ० 41 ) । 11. वही, पृ० 395 (कार्पस इन्सक्रिप्सन्स इंडिकेरम, पृ० 211, आर्कियॉलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, VIII, पृष्ठ 130 ) यह पहाड़ी लगभग 700 फीट ऊँची है। फ्लीट के अनुसार यह भागलपुर से लगभग 35 मील दक्षिण में स्थित है। 12. आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, VIII, पृ० (उद्धृत प्रा० भा० का ऐ० भूगोल, पृ० 395)। 13. प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ० 416-417। 14. स्वामी विवेकानन्द अगस्त, 1891 ई० में भागलपुर आये थे और उन्होंने वहाँ जैन आचार्यों से वार्तालाप भी किया था। अपने सुदीर्घ- भ्रमण में आबू - पर्वत ( राजस्थान ) स्थित जैनमंदिर भी देखने गये थे और उसके पास स्थित गुफा में उन्होंने कुछ दिनों तक वास भी किया था । – युगनायक विवेकानन्द, पृ० 188, प्रथम भाग (बंगला ग्रंथ)
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प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 199