Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 101
________________ को नारिकेल फल से सम्मानित करते हुए कहा “जो विद्वान् या अध्यापक अध्यापनमात्र से सन्तुष्ट रहते हैं, वे आदर्श अध्यापक नहीं हो सकते। जो लोग अध्यापन के साथ ही गहन अनुसंधान के द्वारा-ग्रन्थ रचना करते हैं, वे ही आदर्श कोटि के अध्यापक हो सकते हैं। डॉ० जानकी प्रसाद द्विवेदी जी ने अध्यापन के साथ ही अनेक महत्त्वपूर्ण शोधपरक ग्रंथों की रचना की है। आप संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट विद्वान् हैं। आपको जो पुरस्कार मिला है वह हम सभी के लिए आनन्द एवं गौरव का विषय है। (डॉ०) द्विवेदी को साधुवाद देते हुए उन्होंने उनके शतायु जीवन की कामना की।" ___ अपने अभिनन्दन के उत्तर में (डॉ०) जानकी प्रसाद द्विवेदी ने कहा - मैंने 115 शोधलेखों तथा 11 ग्रंथों की रचना की है। मैं इसी तरह शास्त्र-सेवा में लगा रहूँगा। संस्थानीय छात्रों को हर सम्भव सहयोग देता रहूँगा। (डॉ०) द्विवेदी ने अपने इस अभिनन्दन के प्रति संस्थान के निदेशक प्रो० रिनपोछे तथा अन्य सभी विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त किया। संस्थान के छात्रसंघ के अध्यक्ष भिक्षु छोगल तेन्जिन ने विशिष्ट विद्वानों को माल्प्यार्पण किया। संस्थान की छात्राओं ने संस्कृतभाषा में अभिनन्दन-गीत प्रस्तुत किया। संस्थान की सहायक कुलसचिव (डॉ०) अनुपमा कौशिक ने कौशेय वस्त्र प्रदान करके (डॉ०) द्विवेदी को सम्मानित किया। संस्कृत भाषा में अभिनन्दन पत्र का पाठ (डॉ०) धर्मदत्त चतुर्वेदी ने किया। संस्थान के संस्कृत विभाग के उपाचार्य (डॉ०) रामरक्षा त्रिपाठी ने स्वागत भाषण किया। अनुवाद विभाग के सम्पादक भिक्षु एल०एन० शास्त्री तथा तिब्बती भाषा के प्राध्यापक भिक्षु पेमा ग्यलछन् ने (डॉ०) द्विवेदी के कार्यों के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हुए उनका स्वागत किया। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन पण्डित जनार्दन पाण्डेय जी ने किया। इस कार्यक्रम का संस्कृत भाषा में संचालन (डा०) धर्मदत्त चतुर्वेदी ने किया। इस समारोह में संस्थान के विद्वान् प्रो० कामेश्वर नाथ मिश्र, प्रो० रामशंकर त्रिपाठी तथा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रो० लक्ष्मी नारायण तिवारी, प्रो० ब्रह्मदेव नारायण शर्मा, (डॉ०) रमेश कुमार द्विवेदी तथा (डॉ०) हरप्रसाद दीक्षित ने उपस्थित होकर इसे सफल बनाया। उत्तरप्रदेशीयकर्णपुरजनपदान्तर्गतकमालपुरग्रामप्रसूतानां पाणिनीयकातन्त्रचान्द्रादिशब्दविद्योपासकानां कातन्त्रञ्चाधिकृत्य वाचस्पति' (डी० लिट्०) इति लब्धशोधोपाधीनां धर्मसदाचारपरायणानां संस्थानस्यास्य संस्कृतविभागे उपाचार्यपदं सुशोभयतां सम्माननीयानां डॉ० जानकीप्रसाद-द्विवेदमहाभागानां संस्कृतवाङ्मयस्य विशिष्टसेवायै दिल्लीस्थश्रीकुन्दकुन्दभारतीन्यासस्य 'आचार्य उमास्वामि' संस्कृतभाषासाहित्यपुरस्कारेण सम्मानितानाम् अथ च कातन्त्रशास्त्रीयगभीरवैदुष्याश्रितेन कातन्त्रसिन्धु' इति विशिष्टसम्मानोपाधिना विभूषितानां तेषां सामोदं स्वागताभिनन्दनं विदधत् केन्द्रीय-उच्चतिब्बती-शिक्षासंस्थानमिदं तेभ्य: समर्पयतीदम् अभिनन्दनपत्रम् सदैव ये वैदिकमार्गगामिनो मनस्विनः शीलविभूषिता इमे। गवेषकास्ते प्रथिताश्च जानकीप्रसादवर्याः कुशला: समीक्षका: ।। 1 ।। प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 00 99

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