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भावना एवं लगन के प्रति दिये जाते हैं। पाटोदी जी ने ख्याति की इच्छा के बिना समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य किया है। उसी के परिणामस्वरूप उन्हें यह सम्मान दिया गया है।" उन्होंने स्वर्गीय साहू अशोक जैन द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा करते हुए कहा कि "साहू परिवार की तीन पीढ़ियों ने जैन समाज के उत्थान के लिए जो कार्य किए, वे अनुकरणीय हैं। साहू अशोक जैन ने समाज को एक नई दिशा दी। उनकी रिक्तता को भरना असंभव है।" आचार्यश्री ने कहा कि अशोक जी को ये संस्कार अपनी माता रमाजी से मिले थे और रमा जी को ये संस्कार गांधी जी के संपर्क में रहने पर मिले। अशोक जी की स्मृति में यह पुरस्कार स्थापित कर बड़ौत जैन समाज ने एक सराहनीय कार्य किया है।" उन्होंने कहा कि हमारा देश संप्रदाय निरपेक्ष व पंथ निरपेक्ष तो हो सकता है, लेकिन धर्मनिरपेक्ष कहना गलत है।
श्री बलिराम भगत जी ने इस अवसर पर कहा कि “जैनधर्म विश्वधर्म है, मानवधर्म है। इसमें समस्त प्राणियों के कल्याण की कामना की गई है।" उन्होंने कहा कि “यदि जैन सिद्धांतों को आचरण में उतार लिया जाए तो यह देश सुधर सकता है। आजकल जैन समाज का जो पर्व महान पर्व चल रहा है, वह दशलक्षण पर्व आत्मशुद्धि की बहुत आवश्यकता है।" उन्होंने कहा कि “पहले राजनीति का अर्थ राष्ट्रसेवा होता था, लेकिन आज राजनीति अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है। अब उसका अर्थ राष्ट्र सेवा न होकर स्वयं की सेवा बन गया है। यह गौरव की बात है कि यह पुरस्कार स्वतंत्रता सेनानी श्री पाटोदी को दिया जा रहा है।”
साहू अशोक जैन को याद करते हुए श्री भगत ने कहा कि “साहू-परिवार ने बिहार के विकास में अविस्मरणीय योगदान दिया है। बिहार के आर्थिक विकास में साहू परिवार का . तीसरा स्थान आता है।” समाजसेवी उम्मेदमल जैन पांडया ने कहा कि “पाटोदी जी ने समाज, व्यापार, राजनीति आदि सभी कार्यों में कभी भी नैतिक मूल्यों को नहीं छोड़ा।" समाजसेविका विदुषी श्रीमती सरयू दफ्तरी मुंबई ने कहा कि पाटोदी जी ने इन्दौर के निकट गोम्मटगिरि तीर्थ स्थापित कर महान कार्य किया। उन्होंने जो भी कार्य हाथ में लिया पूर्ण करके छोड़ा।” विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति विजेंद्र जैन ने इस पुरस्कार स्थापना की सराहना करते हुए कहा कि “आचार्यश्री की प्रेरणा से ऐसे ही अनेक महान कार्य संपन्न हुए हैं। आचार्यश्री ने उत्कृष्ट सेवा को सदा प्रोत्साहित किया है।" डॉ० मंडन मिश्र ने कहा कि “साहू-परिवार ने धर्म, संस्कृति, उद्योग द्वारा राष्ट्र की उन्नति में महान् योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना कर भारतीय भाषाओं को सर्वोच्च सम्मान दिया। संस्कृत के विकास में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।” श्री पाटोदी को पं० जयकुमार जैन ने तिलक, चक्रेश जैन ने माल्यार्पण किया। साहू रमेश चन्द्र जी ने प्रशस्ति-पत्र का वाचन किया। समारोह के संचालक डॉ० सुदीप जैन ने पाटोदी जी का परिचय देते हुए बताया कि "श्री पाटोदी 25 वर्ष की उम्र में ही इन्दौर के मेयर बने एवं 12 वर्ष विधायक रहे। आचार्यश्री की प्रेरणा से समाजसेवा में आए। बावनगजा सहित कई तीर्थों
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99