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भाव सनातन और सार्वभौमिक है-भावों को केवल विभिन्न भाषाओं में
ही अभिव्यक्त किया जाता है और हमारे भाषाई वैविध्य में जो एक उल्लेखनीय तथ्य है वह है-अन्य भाषाओं से लाये गये शब्द और एक सहज तत्परता से इनका हमारी भाषाओं में घुल-मिल जाना, समाहित हो
जाना । यदि किसी भी भाषा को कायम रहना है, फैलना है और फलना-फूलना है, तो व्यापक स्तर पर पारस्परिक व्यवहार, आदान-प्रदान
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है-अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना है।
भाषा की एक सांझी आत्मा है, इसे
जीवन्त बनाये रखिये।
नवभारत टाइम्स प्रकाशन-समूह
शुभकामनाओं सहित