Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ धर्म:' और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' रहा है, अपने पूर्वजों को याद नहीं कर सकते और अपनी संस्कृति की उन गाथाओं की शिक्षा अपने बच्चों और भारत की युवा पीढ़ी को भी नहीं दे सकते, क्योंकि ऐसा करने पर सांप्रदायिकता का आरोप हम पर लग जाता है। धर्मनिरपेक्षता की यह गलत व्याख्या है। वास्तव में हर शिक्षण-संस्था को अपने धर्म की एवं नैतिकता की शिक्षा देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।" डॉ जोशी ने जैन समाज के शीर्ष नेता साहू रमेशचंद्र जैन की यह मांग को स्वीकार कर लिया कि भगवान् महावीर की 2600वीं जयंती राष्ट्र स्तर पर मनाए जाने हेतु सरकारी स्तर पर कमेटी शीघ्र गठित की जाएगी। साथ ही पाली, प्राकृत, संस्कृत के संवर्द्धन-हेतु दिगंबर जैन कालेज में स्थापित पीठ की स्थापना में पूर्ण सहयोग का भी उन्होंने आश्वासन दिया तथा प्रबंध समिति की मांगों की पूर्ति के लिए, जिसमें नवीन पाठ्यक्रम शामिल हैं, में भी अपने मंत्रालय का पूर्ण सहयोग देने का वायदा किया। क्षेत्रीय सांसद तथा केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री श्री सोमपाल शास्त्री ने इस अवसर पर कहा कि “जैनधर्म ने संपूर्ण विश्व के लिए एक जीवन पद्धति दी है। इसमें पानी और वनस्पति के कम से कम दोहन करने पर बल दिया गया है, जबकि आज प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण पानी का अकाल है, भूकंप आदि आ रहे हैं तथा पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो रही है।" . उन्होंने कहा कि “श्रमण संस्कृति श्रम पर आधारित थी। अर्थात् कर्म करने से ही हम आगे बढ़ सकते हैं। आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज उसी परंपरा की देन है। इनके आशीर्वाद से हम संबल प्राप्त कर सकते हैं।" ___ साहू रमेशचंद्र जैन ने कहा कि “जैन-संस्कृति अतिप्राचीन है। यह समय-समय पर आक्रमणकारियों के प्रभाव से अभिभूत अवश्य हुई और यही कारण है कि अनेक जगह जैन मूर्तियाँ प्राप्त हो रही है। ऐसे समय में आचार्य समन्तभद्र, आचार्य कुन्दकुन्द की परंपरा को बीसवीं सदी तक निर्वाह करने वाले आचार्य शांतिसागर जी तथा आचार्य विद्यानंद जी हैं।" आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज ने अपने आशीवर्चन में कहा कि “आज के संकट-काल में सभी को तन-मन-धन से देश की रक्षार्थ सहयोग करना चाहिए।" उन्होंने 2200 वर्ष पूर्व हुए प्रतापी जैन सम्राट् खारवेल का उल्लेख करते हुए कहा कि "यूनान ने जब देश पर हमला किया। तो खारवेल ने उसे भारत से बाहर खदेड़ कर देश की रक्षा की।" उन्होंने कहा कि “जैन समाज का अल्पसंख्यक होते हुए भी देश के हर क्षेत्र में भारी योगदान है।" आचार्यश्री ने इस भ्रम को दूर किया कि यदि जैन समाज को अल्पसंख्यक दर्जा मिल जाता है, तो वह हिंदू समाज से किसी तरह से अलग हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि आज सिखों व बौद्धों को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है, किंतु वे हिंदू समाज से अलग नहीं है। इसी प्रकार जैनों को भी अपनी शिक्षा-संस्थाओं व धर्मायतनों की सुरक्षा की दृष्टि से संविधान में प्रदत्त अधिकार मिलना चाहिए। प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 0295

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116