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डॉ० लुडविग अल्सडोर्फ
-डॉ० अभय प्रकाश जैन
प्रोफेसर (डॉ०) अल्सडोर्फ विश्वविद्यालय फेडरल रिपब्लिक जर्मनी में पाली, प्राकृत, अपभ्रंश के अध्ययन का कार्य करते थे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1930-32 में जर्मन, फ्रेंच तथा भाषाविद् के रूप में कार्य किया। उन्होंने आचार्यरत्न श्रीदेशभूषण जी मुनिराज से प्रेरणा लेकर जैनदर्शन पर व्यापक अध्ययन किया था। फलत: उन्हें 'हरिवंश पुराण' पर शोधकार्य करने की प्रेरणा डॉ० हर्मन जैकोबी से मिली। ___डॉ० अल्सडोर्फ का जन्म 1904 में 'राहमानलैण्ड' (जर्मनी) में हुआ था। उन्होंने भारतीय विद्या (Indology), समीक्षात्मक भाषाविज्ञान, संस्कृत तथा अरबी, फारसी का अध्ययन हैडिलबर्ग तथा हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में किया। संस्कृत का अध्ययन उन्होंने नरिच जिम्मर तथा वाल्दीर शियूबिंग के सम्पर्क में पूरा किया। डॉ० अल्सडोर्फ ने 1928 में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय से 'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक जैन अपभ्रंश ग्रंथ पर पी-एच०डी० की शोध-उपाधि प्राप्त की। इससे आगे का शोध उन्होंने डॉ० हैनरिच ल्यूडर नामक जर्मन इंडोलाजिस्ट के सान्निध्य में जारी रखा। फिर वे हर्मन जैकोबी के सम्पर्क में आए
और 'हरिवंशपुराण' पर शोधकार्य किया जिसका शोध-ग्रंथ 1963 में प्रकाशित हुआ। 1932-33 में वे दक्षिण के दिगंबर मुनियों के सम्पर्क में आये, उनके ज्ञान ने उन्हें चमत्कृत कर दिया।
शिवपुरी में उनकी आचार्य विजयेन्द्र सूरि तथा विद्याविजय मुनि, जयन्तविजय मुनि से जैनधर्म-विषयक चर्चायें हुईं। वे बर्लिन विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी/जैनोलॉजी के रीडर' रहे। बाद में मुन्सिस्टर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर' के पद पर कार्य किया। अक्तूबर 1950 में प्रोफेसर अल्सडोर्फ को हैड ऑफ दि डिपार्टमेंट इंडोलाजी/ जैनोलॉजी' बनाया गया। वे इस पद पर अपने गुरु प्रो० शुबिंग के स्थान पर हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में नियुक्त किए गए। वे 1972 तक हैम्बर्ग विश्वविद्यालय पर आसीन रहे।
जैनविद्या/भारतीय विद्या पर उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए हम उनका अभिनन्दन करते हैं। उनके जैनविद्या एवं भारतीय विद्या-विषयक लेखन का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:(1) 'उत्तराध्ययन' पर 6 शोध आलेख। (2) 'अपभ्रंश अध्ययन' Apabramsha Studies (ग्रंथ) (1937) भाषा जर्मन। (3) दि इंडियन सव कोरिनेट भारत-पाकिस्तान-सीलोन (ग्रंथ) (1955)।
. प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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