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(4) कन्ट्रीब्यूशन टू दि हिस्ट्री ऑफ वेजीटेरियनिज्म एण्ड वरशिप इन इण्डिया (ग्रंथ)
(1951) तथा (1959)। (5) दो वोल्यूम में प्रो० हैनरिच ल्यूडर के अप्रकाशित शोधपत्रों के प्रकाशन हुआ है,
इसके संपादक इन वोल्यूमों का नाम 'वरुण' रखा है। (6) आप पाली/प्राकृत क्रिटिकल डिक्शनरी के मुख्य संपादक रहे। __ वे साइंस एकेडेमी एण्ड लिटरेचर मैनेन्स' के सदस्य तथा ‘रायल डैनिश ऐकेडेमी साईंस/लिटरेचर' के कार्यकारी सदस्य रहे। वे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत 12 बार आए। संस्कृत संगोष्ठियों तथा अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस ऑफ ओरियण्टलिस्ट में आए। जैनआगमों पर उनके शोधपूर्ण व्याख्यान उल्लेखनीय रहे हैं।
'क्षमावीरस्य भूषणम्' "खम्मामि सव्व जीवाणं, सवे जीवा खमंतु मे।" क्षमा में अपार शक्ति है। वह क्षमाप्रदाता को तो ऊँचा उठाती ही है, क्षमा प्राप्त करनेवाला भी उसकी कृपापूर्ण उदारता से वंचित नहीं रहता। जैसे वस्त्र प्रतिदिन मलिन होते रहते हैं और उन्हें पुन: निर्मल करने का प्रयत्न किया जाता रहता है, वैसे ही सावधान रहते हुए भी मानव को ज्ञात-अज्ञात क्रोधकषाय बाधित करते रहते हैं। उन्हें क्षमा के निर्मल-नीर से प्रक्षालित करनेवाला अपने आत्मा में शान्ति के शीतल सरोवरों की रचना करता है। नीतिकार कहते हैं कि “जो दुर्वचन बोलता है, उसे रात्रि में नींद नहीं आती है; किन्तु उसे सहन करनेवाला क्षमाधारी निराकुलता से नन्दनवन के मसण-पल्लवों पर सोता है।" क्षमा के प्रदेश में क्रोध की अग्नि प्रज्वलित नहीं होती, वहाँ गरह मास बसन्त के फूल मुसकराते रहते हैं। धर्म की भूमि, जिसमें 'अहिंसा' बीज बोया जाता है, पहले 'क्षमा' से उर्वर की जाती है। इसी हेतु से पर्वराज दशलक्षणों में क्षमा को प्रथम स्थान प्राप्त है। यह क्षमा पराजित का दैन्य नहीं, अपितु विजयी का भेरीनाद है। 'खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे' यह सन्मति महावीर की दिव्यध्वनि है। जो महावीर होता है, वही विश्व को 'अभय' दे सकता है। पृथ्वी जब अपना क्षमाभाव छोड़ती है, तो भयानक भूचाल
आते हैं और मानवजाति जब क्षमाहीन हो जाती है, तो विश्व में प्रचलित मत्स्यन्याय' उसे विनाश के बर्बर-युग में धकेल देता है। अत: मानवता की विभूति, धर्मबीज की प्ररोहभूमि, निराकुलता की धात्री, रज्जुरहित स्नेहग्रन्थि और मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य की ज्येष्ठा क्षमा के सम्यक्त्वानुपूर्वी उत्तमत्व से हम अक्षीण रहें, यही 'क्षमा' दिवस का प्रशस्त मंगलपाठ है।
विनयावनत प्राकृतविद्या' परिवार
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99