Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 79
________________ है। इससे तन-मन की निर्मलता मिलती है। जब से आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने 'बद्रीनाथ' की मूर्ति को 'आदिनाथ' की प्रतिमा घोषित किया; तब से ही मैं अपने प्रात:कालीन 'वन्दनाक्रम' में 'अष्टापद आदीश्वर स्वामी' के रूप में परोक्ष-वन्दना का भाव रखता आया हूँ। संभव है, मेरी परोक्ष-भावना से पत्नी को 'बद्रीनाथ' यात्रा के लिये प्रेरित किया हो? 'श्री बद्रीनाथ यात्रा' की तैयारी की जाने लगी। गर्मी, सर्दी व वर्षा –तीनों ऋतुओं के लिये वस्त्र-व्यवस्था की। नाश्ते-भोजन की व्यवस्था तो सामूहिक ही थी। दिनांक 23 मई '98 को शनिवार की रात्रि में 11.00 बजे श्री पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर में आरती-वन्दना करके हम लोगों ने 20-20 सीटों वाली दो मिनी बसों में राजस्थान विधानसभा-भवन से 10.30 पर प्रस्थान किया। दूसरे दिन दिनांक 24 को दिल्ली होते हुये प्रात: 9.00 बजे मोदीनगर स्थित श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के पृष्ठभागीय विश्रामस्थल में निवृत्त होकर मन्दिर जी में भ० शान्तिनाथ की विशाल प्रतिमा की पूजा-वन्दना की। यहाँ से 11.00 बजे हरिद्वार की ओर चले. जहाँ 3.00 बजे पहुंचे। हरिद्वार में बस स्टैण्ड के पास शहर में श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर है। परन्तु महाकुंभ के मेले के अन्तिम चरण एवं अगले दिन सोमवती अमावस्या की भीड़ के कारण हमें शहर के बाई-पास ऋषिकेश मार्ग पर श्री पार्श्वनाथ श्वेताम्बर जिनालय के विश्राम-स्थल में ठहरना पड़ा। सायंभोजनादि से निवृत्त होकर भ्रमण करते हुये गंगा नदी के विशाल प्रवाह को 'हर की पौड़ी' से देखा। रात्रि-विश्राम उक्त स्थल में ही किया। दूसरे दिन दिनांक 25 को प्रात: 8.00 बजे अल्पाहार कर ऋषिकेश' की ओर चले। बसों की चैकिंग के कारण बीच-बीच में रुकना पड़ा। मध्याह्न में ऋषिकेश' में गंगादर्शन, लक्ष्मणझूला, मन्दिर आदि देखें। हरिद्वार की तरह यहाँ भी भीड़ थी, लक्ष्मणझूला को ही इकतरफा पार करने में आधे घण्टे से अधिक लग गया। ऋषिकेश से लगभग 1.00 बजे आगे की ओर चले। यहीं से चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है। पर्वत-मालाओं में चलते हुये 'व्यासी' कस्बे में प्रवेश कर वन-विभाग के उपवन में भोजन लिया। व्यासी से देवप्रयाग होते हुये पर्वतीय सर्पाकार चढ़ाई पर प्राकृतिक सुषमा का अवलोकन करते हुये रात्रि 9.00 बजे श्रीनगर-गढ़वाल पहुंचे। ___ श्रीनगर-गढ़वाल में अलकनन्दा नदी के किनारे श्री ऋषभदेव दिगम्बर जैन मन्दिर है, जहाँ आदिनाथ भगवान् का समवशरण आया था। हमने रात्रि विश्राम इसी मन्दिर के पृष्ठभाग में बने भवन में किया। दूसरे दिन दिनांक 26.5.98 को प्रात: भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा (सं०1538) एवं इनके प्राचीन चरणों की पूजार्चना की। यहाँ दो अन्य 4"-5" की छोटी पार्श्वनाथ की प्रतिमायें कृष्ण-नील वर्णी हैं। मन्दिर 150 वर्ष प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 0077

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