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प्राचीन है। आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने सन् 1970 में यहीं चातुर्मास किया था। यहाँ पर्वत-मालाओं के मध्य अलकनन्दा नदी का शान्त प्रवाह हमारे तन-मन को आज भी शीतलता प्रदान कर रहा है। बस में खराबी होने से यहाँ हमें एक दिन और रुकना पड़ा। दिनांक 27.5 को प्रात: 7.00 बजे भगवान् आदिनाथ की वन्दना करके हमने बद्रीनाथ की ओर प्रयाण किया।
सर्पाकार पर्वतीय चढ़ाइयाँ, नीचे कल-कल-निनादिनी नदी का प्रवाह और नीचे से ऊपर तक उत्तुंग विविध विशाल घने वृक्षों के प्राकृतिक मनोरम दृश्यों से नयनानन्दानुभूति करते हुये हम ऊपर से ऊपर चढ़ने लगे। मार्ग में आने वाले कस्बों – रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नन्दप्रयाग होते हुये चमोली जिले में पीपलकोठी पहुँचे। पर्वतीय सान्निध्य में भोजन किया। जोशीमठ हम मध्याह्न 1.00 बजे पहुँचे। जोशीमठ से बद्रीनाथ 38 कि०मी० है। यहाँ से बद्रीनाथ तक इकतरफा मार्ग है। क्योंकि जितनी गहरी खाइयाँ हैं, उतने ही ऊँचे-ऊँचे पर्वत। हर समय सतर्क रहना पड़ता है। जोशीमठ में आगे जाने के लिये हमें 2 बजे प्रवेशानुमति मिली। आगे गोविन्दघाट पहुँचे। जोशीमठ से बद्रीनाथ के सफर में प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को जीभर देखने को मिलता है। बीच रास्ते में पाण्डुकेसर मन्दिर मिलता है; जहाँ वाहनों को रोका जाता है। यहाँ जब तक दोनों तरफ के वाहन एकत्रित नहीं हो जाते; तब तक यातायात आगे नहीं बढ़ता।
जैसे-जैसे चढ़ते गये, मार्ग में शीतल बर्फीले झरने, नदी में बर्फीले जल का वेगमय प्रवाह, कहीं वृक्षाच्छादित पर्वत, तो कहीं हिमाच्छादित पर्वत दिखने लगे। मौसम में नमी आ गई। नीचे बर्फीली नदियाँ, तो ऊपर बर्फीले पहाड़ । जीवन में प्रथम बार वह मनोरम . दृश्य देखने को मिला। पर्वतीय मार्ग के प्रत्येक खतरनाक मोड़ को ड्राइवर ने बड़ी सावधानी से पार किया। एक पल का प्रमाद बड़े हादसे में बदल जाता है। मन ही मन सब ‘णमोकार मंत्र' जपते रहते।.....अन्त में वह शुभ घड़ी आ गई; जब राष्ट्र के उत्तुंग प्रहरी ने अपने हिमाच्छादित रूप में अपने दर्शनों से हमें आप्लावित किया। हम सब आत्मविभोर हो उठे। ठीक सायं 5.00 बजे भगवान् आदिनाथ (बद्रीनाथ) के मोक्षधामस्थल पर पहुंचे।
बसे से उतरे, थोड़ी सर्दी महसूस हुई। बस स्टैण्ड के पास ही अनेक विश्रामस्थल बने हुये हैं। हम दिगम्बर जैन विश्रामगृह की ओर चले, जो बस स्टैण्ड से थोड़ा नीचे उतरकर है। आगे के भवन में मन्दिर है, जिस पर 'अष्टापद कैलाशदेव भगवान् आदिनाथ निर्वाण-स्थली' लिखा है। इसके पीछे अतिथिगृह है; जिसके निचलेभाग में 6 कमरे और ऊपर की मंजिल में दो बड़े हाल निर्मित है; जिनमें 50 व्यक्ति एक साथ रह सकते हैं। सभी सुविधायें हैं, पूर्व में पत्र-व्यवहार होने से हम 40 व्यक्तियों के लिये तख्त, बैड, गद्दे, रजाई-समेत उपलब्ध थे। हमने यहीं विश्राम लिया।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99