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दिल्ली से 511 कि०मी० है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 818 कि० है। बर्फ से ढंकी नीलकण्ठ की चौकी भगवान् ऋषभदेव की तपस्थली रही है। बद्रीनाथ का मन्दिर गढ़वाली स्थापत्य-कला का विशिष्ट नमूना है। प्राचीनकाल में यह स्थान बेर (बदिर) के सघन वृक्षों से आच्छादित होने से 'बदरीनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मन्दिर के नीचे तीन प्राकृतिक उष्ण जल स्रोत-तप्तकुण्ड, सूर्यकुण्ड और नारदकुण्ड हैं। एक कुण्ड में गन्धक उष्ण जल है; जिसके स्नान से कायिक चर्मरोग दूर होते हैं। मन्दिर में जाने से पूर्व तप्तकुण्ड में स्नान की परम्परा है। प्रतिदिन अभिषेक-दर्शन के माध्यम से दिगम्बररूप में दर्शन देने वाली बद्रीनाथ प्रतिमा अलकनन्दा नदी में गरुड़कुण्ड से स्वप्न देकर निकली है। कहा जाता है कि यहाँ आज भी अनेक जैन प्रतिमायें मिलती हैं। यह क्षेत्र जैन-संस्कृति के प्राचीन वैभव को प्रकट करता है।
दि० 28/5/98 को मध्याह्न में हम 4 कि०मी० दूर ‘माणा ग्राम' गये। वहाँ सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर विशाल, घोर गर्जना ध्वनियुक्त अद्भुत प्रपात को देखा। व्यासगुफा व गणेशगुफा भी देखी। उस समय आकाश में घनघटायें छा गईं। विश्रामस्थल लौटते-लौटते वर्षा प्रारम्भ हो गई। जो दो घण्टे तक चलती रही। रात्रि को अच्छी ठण्ड रही। दूसरे दिन पुनः प्रात: 5 बजे बदरीनाथ मन्दिर पहुँच कर पहले तप्तकुण्ड में स्नान किया, फिर भ० आदिनाथ (बदरीनाथ) की मूर्ति के अभिषेक देखे। परिक्रमा में 'आदिनाथ स्तोत्र' का पाठ करने पर दो बार गर्भगृह के द्वार खुल गये । भगवान् आदिनाथ के स्मरण का ऐसा ही प्रभाव है। 'मनुस्मृति' में लिखा है
“अष्टपष्टिषु तीर्थेषु यात्राया: यत्फलं भवेत् ।
श्री आदिनाथदेवस्य स्मरणेनापि तद् भवेत् ।।" अर्थ: अड़सठ तीर्थों की यात्रा का जो फल होता है; वह फल श्री आदिनाथ स्वामी के स्मरणमात्र से मिल जाता है।
दि० 28/5/98 को बद्रीनाथ देवभूमि-प्रांगण से प्रात: 9 बजे वापिस लौटे। रात्रि 9.00 बजे श्रीनगर-गढ़वाल दि० जैन मन्दिर पहुँचे। मध्याह्न भोजन जोशीमठ में किया। दि० 30/5/98 को भ० ऋषभदेव के इस मन्दिर में अभिषेक किये। 'श्रुतपंचमी' के उपलक्ष्य में सरस्वती-पूजा की। मध्याह्न में यहाँ से प्रस्थान किया। टिहरी बाँध होते हुये सघन वृक्षाच्छादित अति-उत्तुंग पर्वत-मालाओं से युक्त प्राकृतिक सुषमा के वैभव को निहारते हुये हम रात्रि 9 बजे मसूरी पहुंचे। यहाँ पर हम जैन धर्मशाला में ठहरे।
दि० 31/5 को मसूरी के दिगम्बर जैन मन्दिर में पूजा-अर्चना की। मसूरी-देहरादून से 40 कि०मी० दूरी पर स्थित देश का व्यस्तत पर्यटक-नगर है। यहाँ से पहाड़ियों के सुन्दर दृश्य दिखते हैं। इन दिनों यहाँ का मौसम समशीतोष्ण रहता है।
दि० 1 जून '98 को दि० जैन मन्दिर मसूरी के दर्शन करके प्रात: 7.30 बजे यहाँ
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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