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परिवर्तन भी करा देता है।
जब मन्दोदरी सीता को अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पित एवं घोर विपत्तिकाल में भी शील के प्रति अडिग देखती है, तब वह उससे प्रभावित होती है और उसके अन्तस्तल में निहित शील-संस्कार जागृत हो उठता है। वह सीता के प्रति अपने द्वारा किये गए दुर्व्यवहार के कारण आत्मगर्हा कर रावण की कुत्सित-भावनाओं के प्रति विद्रोह कर उठती है एवं उसे भला-बुरा कहकर समझाने का प्रयास करती है तथा सीता को वापिस भेज देने की प्रार्थना करती है। इसप्रकार से मन्दोदरी के चरित्र को दूषण से बचाकर उसे पाठकों की सहानुभूति अर्जित करने का अच्छा अवसर प्रदान किया है।
राम-रावण के भीषण युद्ध में अन्तत: राम की विजय होती है और रावण का वध । सीता को तो रावण के कारागार से मुक्ति मिल जाती है, किन्तु मन्दोदरी पर वज्रपात हो जाता है। वैधव्य उसके पल्ले पड़ता है। अपने परिकर में जब वह विधवा के रूप में प्रस्तुत होती है, तब सारा वातावरण शोक से भर जाता है। यहाँ पर कवि ने मन्दोदरी के चरित्र को पुन: ऊपर उठाने का प्रयास किया है। उसके अनुसार राम एवं रावण की परिस्थितियों का गहन चिन्तन करने के बाद मन्दोदरी के सामने संसार की विचित्रता एवं अनित्यता स्पष्ट हो जाती है। फलस्वरूप वह वैराग्योन्मुख होकर 'आर्यिका व्रत' धारण कर लेती है।
इसप्रकार मन्दोदरी का चरित्र विविधताओं से परिपूर्ण है। एक ओर वह पति की प्रसन्नता के लिए दौत्य-कर्म करती है, तो दूसरी ओर वह अपने ही पति की कुत्सित भावनाओं का प्रतिरोध भी। क्योंकि उसकी दृष्टि में जब शासक ही भक्षक बन जायगा
और यदि वह स्वयं ही नीति-विधान के विपरीत आचरण करेगा, तब समाज एवं राष्ट्र की सुरक्षा कैसे सम्भव हो सकेगी? |
लंकासुन्दरी:-वीर वज्रायुध की पुत्री लंकासुन्दरी का चित्रण एक तेजस्विनी तथा अदम्य वीरांगना के रूप में हुआ है। इस चरित्र की विशेषता यह है कि यह एक सौन्दर्यवती किन्तु अविवाहिता युवती है। वह अस्त्र एवं शस्त्र दोनों में ही निपुण है। वह अपने पिता की भक्ति एवं सेवा के लिए इतनी अधिक समर्पित है कि लंका में प्रवेश करते समय हनुमान के द्वारा पिता की हत्या देखकर उसका शौर्य भड़क उठता है और वह खड्ग लेकर हनुमान को न केवल ललकारती है, अपितु रणचण्डी का वेश धारणकर युद्ध में हनुमान को चुनौती देकर उनसे टकरा भी जाती है और अनेक विषम-शस्त्रों का प्रयोग कर उनका कवच भी नष्ट-भ्रष्ट कर डालती है। वीर हनुमान इस कुमारी युवती के कल्पनातीत पराक्रम से क्षणभर के लिए आतंकित हो उठते हैं।
इसप्रकार संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि 'पउमचरिउ' के नारी पात्र भाग्यवादी नहीं; बल्कि अत्यन्त धैर्यशील, निर्भीक, साहसी एवं पुरुषार्थवादी हैं। वे कर्मसिद्धान्त में ,
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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