Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ कहता है कि—“यह वही ‘सूर्यहास खड्ग' है, जिसने तुम्हारे पुत्र के प्राणों को हर लिया है । यदि कोई मनुष्य तुम्हारी ओर से रणभार उठाने में समर्थ हो, तो उसके लिए यह धर्म का हाथ बढ़ा हुआ है।”23 शील - स्थापत्य की दृष्टि से 'पउमचरिउ' में कैकेयी के बाद एक ऐसी पात्र चन्द्रनखा ही है, जिसने कथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। यही वही पात्र है, जिसने विविध घटनाओं के तान- वितान बुनकर रावण जैसे वीर एवं पराक्रमी योद्धा को भी उत्तेजित किया और 'पउमचरिउ' में उसे एक प्रतिनायक के रूप में प्रस्तुत होने का अवसर प्रदान किया । वस्तुतः रामकथा का मध्य एवं अन्त-भाग चन्द्रनखा की ही देन है। उसके अभाव में न तो रावण द्वारा सीताहरण की ही सम्भावना थी और न ही 'लंकाकाण्ड' की सर्जना ही हो पाती । उसके अभाव में रामकथा एक रस-कथा रहकर धर्मपुराण का रूप अवश्य ले लेती, किन्तु वह एक लोकप्रिय जन-साहित्य के रूप में उभरकर आबाल-वृद्ध, नर-नारियों के कण्ठ का हार कभी नहीं बन पाती । मन्दोदरी:— मन्दोदरी स्वयम्भू की दूसरी ऐसी प्रमुख नारी पात्र है, जिसके माध्यम से स्वयम्भू ने महिला-समाज के गुण-दोषों की प्रभावक समीक्षा की है । कवि ने उसे एक अद्भुत सुन्दरी के रूप में चित्रित कर यद्यपि उसके सौन्दर्य को निर्दोष बतलाया है", किन्तु जिनशासन में सुसंस्कृत रहकर भी अपने प्रियतम रावण की प्रेरणा से वह सीता को रावण की ओर उन्मुख करने हेतु वियोगिनी सीता के पास नन्दन - वाटिका में जाती है । 25 यह उसके पति - परायण होने का ही उदाहरण है । मन्दोदरी स्वभावत: उग्र एवं हठी है। 2" जिस समय वह सीता के सम्मुख रावण की प्रशंसा कर, राम एवं लक्ष्मण को तुच्छ बतलाती है और सीता उसके उत्तर में अपने पति की प्रशंसा करती हुई उसके साथ रावण की भर्त्सना करती है; तब क्रोधानल में दग्ध मन्दोदरी कहती है—“अरी ! तू, अभी मर । कहाँ तो शक्तिशाली और सौन्दर्य-सम्पन्न रावण और कहाँ तेरे तुच्छ वनवासी जंगली राम और लक्ष्मण । तू रावण से बचकर नहीं जा सकती। अब तू अपने इष्टदेव का स्मरण कर, तुझे मेरे सिवा अन्य कोई बचा नहीं 28 सकता अब तेरा माँस काट-काट कर व्यन्तरों को दे दिया जायगा और तेरे नाम की रेखा तक मिटा दी जायगी।"" यद्यपि स्वयम्भू की यह उक्ति पुनरुक्त हो गई है; क्योंकि मन्दोदरी ने सीता को धमकी देते हुए पूर्व में भी इसीप्रकार के कर्कश वचनों का प्रयोग किया है।" किन्तु प्रतिभासित होता है कि मन्दोदरी की उग्रता को तीव्रता देने के लिए ही कवि ने ऐसा किया है। फिर भी कवि की उसके प्रति पूर्ण सहानुभूति है, अत: वह शीघ्र ही उसकी विचारधारा में सुधार भी करवा देता है । कवि जिस तीव्रता के साथ उसकी उग्रता एवं हठधर्मिता का चित्रण करता है, उसी तीव्रता के साथ वह उसमें क्रमिक विचार 64 प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 199

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116