Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 56
________________ माथुरसंघहो उदय मुणीसरु पणेविवि बाल- इंदु गुरु गणहरु । जंपइ विणयमयंकु मुणि आगमु दूगमु जइ वि न जाणऊं । मा लिज्जहु अवराहु महु भवियहुं यहु चूनडिय बखाणऊं ।। 2 ।। हीरा दंति पंति पयडंती गोरउ वोल्लइ पिय वियसंती । सुंदर जाहि सुचेय रेह, महु दय किज्जउ सुह सलक्खण । लइ छिपावहि चूनडिया, हऊँ जिणसासणि सुद्ध वियक्खणि ।। 3 ।। वल्ल्ह जइ न लिहावण आवहिं छिंपु लडा महु वयण सुणावहिं । तिणि लोय तिहुं तंग जुया चउदह रज्जु लिहहिं ऊढन्ते । सत्त रज्जु तलि सुरगिरिहिं उप्परि सत्त- सत्त पिंडन्ते ।। 4।। मेरु महागिरि जंबूदीवहो खारसमुद्द परिट्ठी सीमहु । दीव समुद्द असंखगुणा मज्झलोय सत्तर सउ खेत्तइ । सरिस तीस संकुल पव्वयहं अज्ज म्लेच्छ मोय महि जुत्तई ।। 5 ।। पुणु छणवइ कुभोय-धरालई लवणकाल णामहं मयरालई । अवसप्पिणि उविसप्पिणिया छह-छह कालई लिहहि णिसत्तरं । कोडाकोडि उसाय रहं एक्क एक्कदस दस पवित्तरं ।। 6 ।। चउदह कुलयरं जिण चउवीसहं, लिहि पुराण बारह चक्केसं । वासु एव बलएव णव णवं पडिवासु एवं संचारहिं । कामएव णारय सुमिरि पुणु एयारह रुद्द पयासहिं ।। 7।। दंसणसुद्धि-पमुह अणुसरिय सोलहकारण लिहि जिण चरियइं । तिहिं भेयहिं सम्मत्तु लिहि सत्तभेय मिच्छत्तु संभरि । पंच णाण अणाण तहा दंसण चारि पयत्तिं उद्धरि ।। 8 ।। लिहि एयारह सावय-पडिमा बारह भिक्खु-पडिम मुणि गम्मइ । अट्ठावीस वि मूलगुणा बारह - - ह - विहु चउदह विहु संजमु । सहस अट्ठारह सीलु मणि पंचाचारु मवोसरि उत्तमु ।। 9 ।। गुणहं लक्ख चउरासी टिप्पहि चउदह जीवसमास वियप्पहिं । चउदह लिहि गुणठाण पुणु वीस परुवणं चउदह मग्गण । छह पज्जंती पाण दह चारिवि गइ तहं सिद्ध णिरंजण ।। 10 ।। णाणावरण पंच दुइ वेयण णव दंसण आवरण महाणवं । अट्ठावीस वि मोहणिय आव चारि दुइ गोत्त मछंडहि । णाम पयडि तेणवइ पुणु, अंतराय पंच विलइ मंडहि ।। 11 । । णव पयच्छ सत्त वि लइ तच्चइं छह दव्वइं पंचत्थियकायइं । दुइ पमाण णव मुणहि गया चारि वि णमई जइ णिक्खेवहिं । - OQ 54 प्राकृतविद्या← जुलाई-सितम्बर '99

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