Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 59
________________ अपभ्रंश के आद्य महाकवि स्वयंभू एवं उनके नारीपात्र -प्रो० (डॉ०) विद्यावती जैन यद्यपि वाल्मीकि द्वारा चित्रित नारी-पात्र आगे के अनेक लेखकों के लिए प्रकाश-स्तम्भ बने; फिर भी जैन-लेखकों ने उसका अन्धानुकरण नहीं किया, बल्कि अपनी स्वतन्त्र विचारधारा, श्रमण-परम्परा और युग-प्रभाव आदि का पुट देकर उन्हें कुछ विशिष्टगुणों से अलंकृत किया। श्रमण-साहित्य विशेषत: 'पउमचरिउ' के नारी-पात्रों को देखें, तो श्रमणेतर-साहित्य के नारी-पात्रों से उनके स्वतन्त्र आत्म-विकास के वैशिष्ट्य की सीमा-रेखा स्पष्ट अंकित की जा सकती है। नारी-पात्रों के विविधरूप मुखरित करने में कवि स्वयंभू को बड़ी सफलता मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसे विभिन्न वर्ग की नारियों की मनोदशा का तलस्पर्शी ज्ञान था; अत: उसने जिस नारी का भी चित्रण किया, वह सांगोपांग बन पड़ा है। वे ऐन्द्रजालिक अथवा काल्पनिक नहीं, बल्कि हमारे बीच के सांसारिक-यथार्थ प्राणी जैसे ही हैं, जिनमें भद्रता, अभद्रता अथवा उसके मिश्रितरूप का दर्शन सहज-सुलभ है। परिस्थितियाँ एवं वातावरण नारी में कितना परिवर्तन ला सकते हैं? —यह स्वयंभू के नारी-पात्रों से स्पष्ट है। .. स्वयंभू ने नारी-पात्रों के स्वाभाविक अवगुणों की अवतारणा भी की है, किन्तु अंत में उन्होंने उन्हें भी परिस्थितियों की कसौटी पर कसकर तथा उनका हृदय परिवर्तित कर उन्हें भी उच्चपद पर प्रतिष्ठित किया है। अपभ्रंश-साहित्य के क्षेत्र में नारी के लोकमंगल की यह कल्पना कवि स्वयंभू की संभवत: अपनी ही मौलिक देन है, जो श्रमणेतर-परम्परा में दुर्लभ है। स्वयंभू की यह प्रेरक परम्परा परवर्ती अपभ्रंश-कवियों के लिए भी आदर्श बन गई। इन तथ्यों के आलोक में कवि के 'पउमचरिउ' में वर्णित कुछ प्रमुख-नारी-पात्रों के चरित्रों का यहाँ विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है:___ 1. सीता:-स्वयंभू की सीता सौन्दर्य में अद्वितीय है। कवि ने उसके नख-शिख का हृदयावर्जक वर्णन किया है। उसके अनुसार सीता की काया विद्युल्लता की आभा के समान उज्ज्वल है और उसके अंग-प्रत्यंगों की संरचना अत्यन्त ही सुडौल एवं सुगठित है। अनिन्द्य सौन्दर्यवती होने पर भी कवि ने उसके सौन्दर्य-चित्रण में कामोत्तेजक तथा अश्लील उपमायें नहीं दी हैं। उसने केवल उसके सौन्दर्य के प्रभाव का ही सन्तुलित भाषा में चित्रण किया है। किन्तु सौन्दर्य कभी-कभी अभिशाप का कारण बन जाता है। जिस समय सीता वनवास में राम के साथ विन्ध्य-प्रदेश की घनी अटवी में भटकती है, तब अचानक ही प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर '99 0057

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